Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् (३) तवर्य: । तव+ऋश्य: । तव्-अर्-श्य: । तवयः ।
यहां तव' के अवर्ण से परे ऋश्य के ऋकार अच् को इस सूत्र से गुणरूप (अर्) गुण होता है जो कि उरण रपरः' (१।१।५०) से तत्काल रपर (अर्) हो जाता है। ऐसे ही-खट्वा+ऋश्य: खट्वीः ।
(४) तवल्कारः । तव+लकारः । तव्-अल्+कारः । तवल्कारः ।
यहां तव' के अवर्ण से पर लृकार के लु अच् को सूत्र से गुणरूप (अ) एकादेश होता है। उरण रपरः' (१।१।५०) से लुकार के स्थान में विधीयमान अण् (अ) लपर होता है (अल्)। ऐसे ही-खट्वा+लकार:=खट्वल्कारः । 'अदेङ् गुणः' (१।१।२) से तपर अकार, एकार, ओकार की गुण संज्ञा है। वृद्धि एकादेशः
(१७) वृद्धिरेचि।८८। प०वि०-वृद्धि: ११ एचि ७१। अनु०-संहितायाम्, आत्, एक:, पूर्वपरयोरिति चानुवर्तते । अन्वयः-संहितायाम् आद् एचि पूर्वपरयोवृद्धिरेकः ।
अर्थ:-संहितायां विषयेऽवर्णाद् एचि परत: पूर्वपरयो: स्थाने वृद्धिरूप एकादेशो भवति।
उदा०-(ए) ब्रह्मैडका, खट्वैडका, ब्रह्मैतिकायन:, खट्वैतिकायन: । (औ) ब्रह्मौदन:, खट्वौदनः, ब्रह्मौपगव:, खट्वौपगवः ।
आर्यभाषा: अर्थ- (संहितायाम्) सन्धि-विषय में (आत्) अ-वर्ण से उत्तर (एचि) एच् ए, ओ, ऐ, औ वर्ण परे होने पर (पूर्वपरयो:) पूर्व और पर वर्गों के स्थान में (वृद्धि:) वृद्धि रूप (एक:) एकादेश होता है।
उदा०-(ए) ब्रह्मैडका । ब्राह्मण की भेड़। खट्वैडका । खट्वा खाट, एडका भेड़। ब्रौतिकायन: । ब्राह्मण ऐतिकायन (इतिक का पुत्र)। खट्वैतिकायन: । खट्वा खाट, ऐतिकायन (इतिक का पुत्र)। (औ) ब्रह्मौदन: । ब्रा ब्राह्मण, ओदन=चावल । खट्वौदनः । खट्वा खाट, ओदन-चावल । ब्रह्मौपगवः । ब्राह्मण औपगव (उपगु का पुत्र) । खट्वौपणवः । खाट, औपगव-उपगु का पुत्र ।
सिद्धि-(१) ब्रह्मौडका । ब्रह्म+एकडा। ब्रह्म-ऐ-डका । ब्रह्मैडका।
यहां ब्रह्म के अवर्ण से उत्तर एडका के एच् (ए) को इस सूत्र से वृद्धिरूप (ए) एकादेश होता है। ऐसे ही-खट्वैडका, ब्रह्मेतिकायन:, खट्वैतिकायनः ।