Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् अनु०-संहितायाम्, सुट् इति चानुवर्तते। अन्वय:-संहितायां संज्ञायां पारस्करप्रभृतीनि च सुट् ।
अर्थ:-संहितायां संज्ञायां च विषये 'पारस्करप्रभृतीनि' इत्यत्र च सुडागमो निपात्यते।
उदा०-पारस्करो देश: । कारस्करो वृक्ष: । रथस्या नदी। किष्कु: प्रमाणम्। किष्किन्धा गुहा।
पारस्करप्रभृतिराकृतिगण: । अविहितलक्षण: सुट् पारस्करप्रभृतिषु द्रष्टव्यो यथा-प्रायश्चित्तम्, प्रायश्चित्तिः ।
आर्यभाषा: अर्थ-(संहितायाम्) सन्धि-विषय और (संज्ञायाम्) संज्ञा-विषय में (पारस्करप्रभृतीनि) पारस्कर आदि पदों में (च) भी (सुट्) सुट् आगम निपातित है।
उदा०-पारस्करो देश: । पारस्कर=देश। कारस्कर वृक्ष। रथस्या नदी। किष्कु-प्रमाण । किष्किन्धा-गुहा।
पारस्कर आदि आकृतिगण है। सूत्र से अविहित जो सुट् आगम हो उसे पारस्कर आदि में समझकर शब्दसिद्धि करनी चाहिये। जैसे-प्रायश्चित्त और प्रायश्चित्ति शब्द में सुट् आगम इसी गण में पाठ मानकर सिद्ध किया जाता है।
सिद्धि-(१) पारस्करः । पार+कृ+ट। पार+सुट्+कृ+अ। पार+स्+कर+अ। पारस्कर+सु। पारस्करः ।
यहां पार शब्द उपपद होने पर कृ धातु से कञो हेतुताच्छील्यानुलोम्येष (३।२।२०) से 'ट' प्रत्यय है। इस सूत्र से संज्ञा विषय में 'क' धातु के क-वर्ण से पूर्व 'सुट्' आगम होता है। यहां उपपदमतिङ् (२।२।१९) से उपपद तत्पुरुष समास है। पारं करोतीति-पारस्करः।
(२) कारस्करः। कार+कृ+ट। कार+सुट्+कृ+अ। कार+स्+कर+अ। कारस्कर+सु। कारस्करः।
यहां कार शब्द उपपद होने पर 'कृ' धातु से दिवाविभा०' (३।२।२१) से 'ट' प्रत्यय है। इस सूत्र से संज्ञा विषय में कृ' धातु के क-वर्ण से पूर्व सुट् आगम होता है। कारं करोति-कारस्करो वृक्ष: (उपपदतत्पुरुष)।
(३) रथस्या। रथ+या+क। रथ+सुट्+या+अ। रथ+स्+य्+अ। रथस्य+टाप् । रथस्या+सु। रथस्या।
यहां रथ उपपद होने पर या' धातु से 'आतोऽनुपसर्गे कः' (२।२।३) से 'क' प्रत्यय है। इस सूत्र से संज्ञा-विषय में 'या' धातु के य-वर्ण से पूर्व सुट् आगम होता है।