Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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षष्ठाध्यायस्य द्वितीयः पादः
२७७ अर्थ:-अहीनवाचिनि समासे क्तान्ते शब्दे उत्तरपदे पूर्वपदं प्रकृतिस्वरं भवति।
उदा०-कष्टं श्रित इति कष्टश्रित: । त्रिशकलपतित: । ग्राम॑गत:।
आर्यभाषाअर्थ-(अहीने) अहीन अत्यागवाची समास में (क्ते) क्त-प्रत्ययान्त शब्द उत्तरपद होने पर (पूर्वपदम्) पूर्वपद (प्रकृत्या) प्रकृतिस्वर से रहता है।
उदा०-कृष्टश्रितः । कष्ट को प्राप्त हुआ। त्रिशकलपतित: । आध्यात्मिक, आधिभौतिक आधिदैविक तीन खण्डों वाले दुःख में पड़ा हुआ। ग्रामगत: । गांव को गया हुआ।
सिद्धि-(१) कष्टश्रितः। यहां कष्ट और श्रित शब्दों का 'द्वितीया श्रितातीतपतितगतात्यस्तप्राप्तापन्नः' (२।१।२४) से द्वितीया तत्पुरुष समास है। कष्ट शब्द में 'कष हिंसायाम्' (भ्वा०प०) धातु से क्त-प्रत्यय और 'कृच्छ्रगहनयो: कष:' (७।२।२२) से इट् आगम का प्रतिषेध है। अत: यह प्रत्ययस्वर से अन्तोदात्त है। यह इस सूत्र से अहीनवाची, क्तान्त श्रित शब्द उत्तरपद होने पर प्रकृति से रहता है।
(२) त्रिशकलपतित:। यहां त्रिशकल और पतित शब्दों का पूर्ववत् द्वितीया तत्पुरुष समास है। त्रिशकल' शब्द में त्रीणि शकलानि यस्य स त्रिशकल:' बहुव्रीहि समास है। अत: 'बहुव्रीहौ प्रकृत्या पूर्वपदम्' (६।२।१) से इसका प्रकृतिस्वर से रहता है। इसका त्रि पूर्वपद फिषोऽन्तोदात्त:' (फिट० ११) से अन्तोदात्त है। इस प्रकार त्रिशकल शब्द आद्युदात्त है। यह इस सूत्र से अहीनवाची, क्तान्त 'पतित' शब्द उत्तरपद होने पर प्रकृतिस्वर से रहता है।
(३) ग्रामंगतः। यहां ग्राम और अहीनवाची क्तान्त गत शब्दों का पूर्ववत् द्वितीया तत्पुरुष समास है। ग्राम शब्द 'ग्रसेरा च' (उणा० ११४३) से मन्-प्रत्ययान्त है। प्रत्यय के नित् होने से यह जित्यादिनित्यम्' (६।१।१९१) से आधुदात्त है। यह इस सूत्र से अहीनवाची और क्तान्त गत शब्द उत्तरपद होने पर प्रकृतिस्वर से रहता है।
यहां 'अहीने' का कथन इसलिये किया गया है कि यहां हीनवाची समास में द्वितीयान्त पूर्वपद प्रकृतिस्वर से न रहे-कान्तारातीतः । कान्तार–वन को पार किया हुआ (छोड़ा हुआ)। योजनातीतः । एक योजन मार्ग को पार किया हुआ। प्रकृतिस्वर:
(४८) तृतीया कर्मणि।४८। प०वि०-तृतीया ११ कर्मणि ७।१। अनु०-प्रकृत्या, पूर्वपदम्, क्ते इति चानुवर्तते।