Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् है। 'बल्ल' शब्द अधिकारवाची है, इससे वा०-व-प्रकरणेऽन्येभ्योऽपि दृश्यते' (५ ।२।१०९) से 'अस्यास्ति' अर्थ में 'व' प्रत्यय है। ऐसे ही-अश्वबल्लवः ।
(२) गोमणिन्दः । यहां गो और मणिन्द शब्दों का पूर्ववत् युक्तवाची षष्ठीतत्पुरुष समास है। इस सूत्र से इसके गो पूर्वपद को आद्यदात्त स्वर होता है। मणिन्दः' शब्द में 'आतोऽनुपसर्गे कः' (३।२।३) से 'क' प्रत्यय है। तत्पुरुषे कृति बहुलम्' (६।३।१३) से द्वितीया विभक्ति का अलुक होता है। कर्णे लक्षणस्याविष्टाष्टपञ्चमणिभिन्नछिन्नछिद्रवस्वस्तिकस्य (६।३।११५) के प्रमाण से मणि' शब्द लक्षणविशेषवाची है। ऐसे ही-अश्वमणिन्दः।
(३) गोसंख्यः । यहां गो और संख्य शब्दों का पूर्ववत् युक्तवाची तत्पुरुष समास है। इस सूत्र से इसके पूर्वपद गो' शब्द को आधुदात्त स्वर होता है। संख्य' शब्द में समि ख्यः' (३।२।७) से 'क' प्रत्यय है। चक्षिङ: ख्या' (२।४।५४) से 'चक्षिङ् व्यक्तायां वाचि, अयं दर्शनेऽपि (अदा०आ०) धातु को ख्याञ् आदेश होता है। ऐसे ही-अश्वसंख्यः । आधुदात्तम्
(४) विभाषाऽध्यक्षे।६७। प०वि०-विभाषा ११ अध्यक्षे ७।१ । अनु०-पूर्वपदम्, आदि:, उदात्त इति चानुवर्तते। अन्वय:-अध्यक्षे पूर्वपदं विभाषा आदिरुदात्त:। अर्थ:-अध्यक्षशब्दे उत्तरपदे पूर्वपदं विकल्पेनाद्युदात्तं भवति ।
उदा०-गवामध्यक्ष इति गाध्यक्ष: । गवाध्यक्षः । अश्वानामध्यक्ष इति अश्वाध्यक्ष: । अश्वाध्यक्ष:।
आर्यभाषा: अर्थ- (अध्यक्ष) अध्यक्ष शब्द उत्तरपद होने पर (पूर्वपदम्) पूर्वपद (विभाषा) विकल्प से (आदिरुदात्त:) आधुदात्त होता है।
उदा०-गाध्यक्ष: । गवाध्यक्ष: । गौओं का उच्चत्तम प्रशासन-अधिकारी। अश्वाध्यक्षः । अश्वाध्यक्ष: । घोड़ों का उच्चतम प्रशासन-अधिकारी।
सिद्धि-गाध्यक्ष: । यहां गो और अध्यक्ष शब्दों का षष्ठी (२।२।८) से षष्ठीतत्पुरुष समास में। इस सूत्र से अध्यक्ष शब्द उत्तरपद होने पर गो' पूर्वपद आधुदात्त होता है। विकल्प पक्ष में समासस्य' (६।१।२१७) से समास को अन्तोदात्त स्वर होता है-गवाध्यक्षः । ऐसे ही-अाध्यक्षः । अश्वाध्यक्षः ।
गो+अध्यक्ष: गवाध्यक्षः। 'अवङ् स्फोटायनस्य' (६।१।१२३) से 'गो' शब्द को अवङ् आदेश होता है।