Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् स०-सप्तमी च हारी च तौ-सप्तमीहारिणौ (इतरेतरयोगद्वन्द्वः) । न हरणमिति अहरणम्, तस्मिन्-अहरणे (नञ्तत्पुरुषः)।
अनु०-पूर्वपदम्, आदि:, उदात्त इति चानुवर्तते। अन्वय:-अहरणे धर्म्य सप्तमीहारिणौ पूर्वपदमादिरुदात्त: ।
अर्थ:-हरणवर्जिते धर्म्यवाचिनि शब्दे उत्तरपदे सप्तम्यन्तं हारिवाचि च पूर्वपदमायुदात्तं भवति।
उदा०- (सप्तमी) स्तूपेशाण: । मुकुटेकार्षापणम्। हलेद्विपदिका। हलेत्रिपदिका । दृषदिमाषक:। (हारी) याज्ञिकस्याश्व इति याज्ञिकाश्वः ।
वैयाकरणस्य हस्तीति वैयाकरणहस्ती। मातुलस्याश्व इति मातुलाश्वः । पितृव्यस्य गौरिति पितृव्यगवः ।
यो देयं स्वीकरोति स 'हारी' इत्युच्यते । आचारनियतं यद् देयं तद् धर्म्यमिति कथ्यते। 'धर्म्यम्' इत्यत्र 'धर्मपथ्यर्थन्यायादनपेते' (४।४ ।९२) इत्यनेनानपेतेऽर्थे यत् प्रत्ययः । 'बीजनिषेकादुत्तरकालं शरीरपुष्ट्यर्थ यद् दीयते हरणमिति तदुच्यते' इति काशिकायाम् ।
आर्यभाषा: अर्थ-(अहरणे) हरण शब्द से भिन्न (धर्म्य) आचारनियत देयवाची शब्द उत्तरपद होने पर (सप्तमीहारिणौ) सप्तमी-अन्त और हारीवाची (पूर्वपदम्) पूर्वपद (आदिरुदात्त:) आधुदात्त होता है।
उदा०- (सप्तमी) स्तूपैशाण: । स्तूप (स्मृति-चिह्न) निर्माण के समय देय शाण नामक सिक्का। शाण साढ़े बारह रत्ती का चांदी का सिक्का। मुकुटेकार्षापणम् । मुकुट धारण-राज्यारोहण के समय देय कार्षापण नामक सिक्का। कार्षापण=८० रत्ती सोने का, ३२ रत्ती चांदी का और ८० रत्ती ताम्बे का सिक्का। हलेद्विपदिका। हल जोतने योग्य भूमि पर देय पाद नामक दो सिक्के। पाद-८ रत्ती चांदी का सिक्का (कार्षापण की खरीज)। हलेत्रिपदिका । हल जोतने योग्य भूमि पर देय पाद नामक तीन सिक्के। दृषदिमाषक: । दृषद्-महल आदि का पत्थर (आधारशिला) रखने पर देय माष नामक सिक्का। माष-२ रत्ती चांदी का सिक्का। (हारी) याज्ञिकाश्वः । यज्ञ करानेवाले ऋत्विक (विद्वान) को दक्षिणा में देने योग्य घोड़ा। वैयाकरणहस्ती। व्याकरणशास्त्र के आचार्य को उपहार में देय हाथी। मातलाश्व: । मामा जी के सम्मान में देय घोड़ा। पितव्यगवः । पितृव्य-चाचा जी के सम्मान में देय गौ। ___जो देय द्रव्य को स्वीकार करता है वह 'हारी' कहाता है। कुलपरम्परा वा देशपरम्परा के आचार के अनुसार देय वस्तु धर्म्य कहाती है। वीर्य-निषेक के पश्चात् शरीर की पुष्टि के लिये जो खाद्यवस्तु दे जाती है उसे हरण' कहते हैं (काशिका)।