Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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षष्टाध्यायस्य द्वितीयः पादः युगपत्स्वरः
(५१) तवै चान्तश्च युगपत्।५१। प०वि०-तवै ११ (सु-लुक्) च अव्ययपदम्, अन्त: ११ च अव्ययपदम्, युगपत् अव्ययपदम्।।
अनु०-प्रकृत्या, पूर्वपदम्, गति:, अनन्तर इति चानुवर्तते। अन्वय:-तवैश्चान्त उदात्तोऽनन्तरो गतिश्च पूर्वपदं प्रकृत्या युगपत् ।
अर्थ:-तवै-प्रत्ययस्य चान्त उदात्तो, अनन्तरो गतिश्च पूर्वपदं प्रकृतिस्वरमित्येतदुभयं युगपद् भवति ।
उदा०-अन्वैतवै (तै०सं० १।४।४५।१)। परिस्तरितवै। परिपातवै। तस्मादग्निचिन्नाभिचरितवै।
आर्यभाषा: अर्थ-(तवै) तवै-प्रत्यय को (च) भी (अन्तः) अन्तोदात्त (च) और (अनन्तर:) अव्यवहित (गतिः) गति-संज्ञक (पूर्वपदम्) पूर्वपद को (प्रकृत्या) प्रकृतिस्वर ये दोनों (युगपत्) एक साथ होते हैं।
उदा०-अन्वैतवै (तै०सं० ११४१४५ ११)। अन्वित होने के लिये। परिस्तरितवै। आच्छादित करने के लिये। परिपातवै । परिपालन के लिये। अभिचरितवै । अभिचरण= सम्मुख चलने के लिये। ___ सिद्धि-(१) अन्वैतवै। यहां अनु और एतवै शब्दों का कुगतिप्रादयः' (२।२।१८) से गति-तत्पुरुष समास है। एतवै' शब्द में इण् गतौ (अदा०प०) धातो तुमर्थे सेसेन.' (३।४।९) से तवै' प्रत्यय है। यह इस सूत्र से अन्तोदात्त और गति-संज्ञक 'अनु' शब्द प्रकृतिस्वर से युगपत् होते हैं।
(२) परिस्तरितवै । यहां परि और स्तरितवै शब्दों का पूर्ववत् गतितत्पुरुष समास है। स्तरितवै' शब्द में स्तन आच्छादने (क्रयाउ०) धातु से पूर्ववत् तवै' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है।
(३) परिपातवै। यहां परि और पातवै शब्दों का पूर्ववत् गतितत्पुरुष समास है। पातवै' शब्द में पा रक्षणे (अदा०प०) धातु से पूर्ववत् तवै' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है।
(४) अभिचरितुवै । यहां अभि और चरितवै शब्दों का पूर्ववत् गतितत्पुरुष समास है। चरितवै' शब्द में चर गतिभक्षणयोः' (भ्वा०प०) धातु से पूर्ववत् तवै' प्रत्यय है। उपसर्गाश्चाभिवर्जम्' (फिट० ४।१३) से 'अभि' शब्द अन्तोदात्त है। शेष कार्य पूर्ववत् है। यह सूत्र गतिकारकोपपदात् कृत्' (६।२।१३८) से विहित कृत्स्व र का अपवाद है।