Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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षष्ठाध्यायस्य प्रथमः पादः उदा०-अहीवती, कृषीवती, मुनीवती।
सिद्धि-अहीवती। इस वतीशब्दान्त 'अहीवती' शब्द को इस सूत्र से अन्तोदात्त स्वर होता है। ऐसे ही-कृषीवती, मुनीवती । ये नदी-विशेष की संज्ञायें हैं। अन्तोदात्त:
(६५) चौ।२१६। वि०-चौ ७।१। अनु०-उदात्त:, अन्त इति चानुवर्तते । अन्वय:-चौ पूर्वस्यान्त उदात्त: ।
अर्थ:-चौ परत: पूर्वस्यान्त उदात्तो भवति । अञ्चते कारस्याकारस्य च लोपं कृत्वा चौ' इति निर्देश: कृतः । ___ उदा०-धीच: पश्य। दधीचा, दधीचे। मधूच: पश्य। मधूचा, मधूचे।
आर्यभाषा: अर्थ-(चौ) चु' परे होने पर पूर्ववर्ती अच् को (अन्त उदात्त:) अन्तोदात्त होता है। यहां 'अञ्चति' धातु के नकार और अकार का लोप करके 'चु' शेष रहता है, उसका सप्तमी-एकवचन में निर्देश किया गया है।
उदा०-दधीच: पश्य । दधि प्राप्त करनेवालों को तू देख। दधीचा । दधि प्राप्त करनेवाले के द्वारा। दधीचे । दधि प्राप्त करनेवाले के लिये। मधूच: पश्य । मधु प्राप्त करनेवालों को देख। मधूचा। मधु प्राप्त करनेवाले के द्वारा। मधूचे। मधु प्राप्त करनेवाले के लिये।
सिद्धि-दधीचः । दधि+अञ्चु+क्विन्। दधि+अञ्च्+वि। दधि+अञ्च्+० । दधि+अच्+०। दधि+अच्+शस्। दधि+अच्+अस्। दधि+च+अस्। दधी+च+अस् । दधीच:।
___ यहां दधि-उपपद होने पर ‘अञ्चु गतौं' (भ्वा०प०) धातु से ऋत्विग्दधृक्' (३।२।५९) से क्विन्' प्रत्यय है। 'अनिदितां हल उपधाया: क्डिति' (६।४।२४) से 'अञ्चु' के नकार का लोप होता है। उससे शस्' प्रत्यय करने पर अच:' (६ ।४।१३९) से 'अञ्चति' के अकार का लोप होकर चौ' (६।३।१३८) से पूर्वपद को दीर्घ होता है। इस सूत्र से 'चु' (लुप्तनकार अञ्चति) परे होने पर पूर्ववर्ती अच् अन्तोदात्त होता है। 'गतिकारकोपपदात् कृत्' (६।२।१३८) से उत्तरपद को प्रकृतिस्वर होने से 'अञ्चति' के अकार को उदात्त होता है। ‘अचः' (६ ।४।१३८) से असर्वनामस्थान, अजादि विभक्त परे