Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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षष्ठाध्यायस्य द्वितीयः पादः
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गरीबी में सूखा हुआ। (पक्व ) कुम्भीप॑क्व: । इंडिया में पका हुआ। कलसीप॑क्वः । गगरी में पका हुआ । भ्रष्ट्रपक्व: । भाड़ में पका हुआ। (बन्ध ) चक्रबन्धः । चक्र में बन्धा हुआ । चारेकबन्धः । कारागार (जेल) में बन्धा हुआ ।
सिद्धि-(१) सांकाश्यसिद्ध: । यहां सांकाश्य और सिद्ध शब्दों का 'सिद्धशुष्कपक्वबन्धैश्च' (२ ।१ । ४१) से सप्तमीतत्पुरुष समास है। सांकाश्य शब्द 'वुञ्छण्०' (४/२/७९) से य-प्रत्ययान्त है, अतः प्रत्ययस्वर से अन्तोदात्त है । यह इस सूत्र से तत्पुरुष समास में सिद्ध शब्द उत्तरपद होने पर प्रकृतिस्वर से रहता है। फिट् सूत्र में 'सांकाश्यकाम्पिल्य०' (फिट्० ३ | १६ ) से सांकाश्य शब्द मध्योदात्त भी है। अतः शान्तनव आचार्य के मत में यह मध्योदात्त भी होता है- सांकाश्यसिद्ध: । ऐसे ही - काम्पिल्यसिद्ध: ।
(२) ओकशुष्कः । यहां ओक और शुष्क शब्दों का पूर्ववत् सप्तमीतत्पुरुष समास है । 'ओक' शब्द में 'सृवृभूशुषिमुषिभ्यः कक्' (उणा० ३ | ४१) से विहित कक् प्रत्यय बहुलवचन से 'अव रक्षणादिषु' ( वा०प०) धातु से भी होता है । 'ज्वरत्वर०' (६।४।२०) से 'अव्' धातु के वकार और उपधा भूत अकार को ऊठ् होता है और उसे 'सार्वधातुकार्धधातुकयोः' ( ७ १३ १८४) से गुण होकर 'ओक' शब्द सिद्ध होता है। इस प्रकार 'ओक' शब्द प्रत्ययस्वर से अन्तोदात्त है । यह इस सूत्र से तत्पुरुष समास में शुष्क शब्द उत्तरपद होने पर प्रकृतिस्वर से रहता है।
काशिकावृत्ति में 'ऊकशुष्कः' पाठ है किन्तु महर्षि दयानन्द ने 'सृवृभू०' (उणा० ३ । ४१) की संस्कृतवृत्ति में बहुलवचन से 'ओक' शब्द सिद्ध किया है, ऊक नहीं ।
(३) निधनशुष्कः । यहां निधन और शुष्क शब्दों का पूर्ववत् सप्तमीतत्पुरुष समास है । 'निधन' शब्द में नि-उपसर्गपूर्वक डुधाञ् धारणपोषणयो:' (जु०3०) धातु से 'कृप्टवृजिमन्दिनिधाञ: क्युः' (उणा० २।८२) से 'क्यु' प्रत्यय है। 'युवोरनाकौँ' (७ 1918) से 'यु' को अन- आदेश और 'आतो लोप इटि च' (६/४/६४) से 'धा' के आकार का लोप कर 'निधन' शब्द सिद्ध होता है। अत: यह प्रत्यय स्वर से मध्योदात्त है। यह इस सूत्र से शुष्क शब्द उत्तरपद होने पर प्रकृतिस्वर से रहता है।
(४) कुम्भीप॑क्वः। यहां कुम्भी और पक्व शब्दों का पूर्ववत् सप्तमीतत्पुरुष समास है । 'कुम्भी' शब्द में 'षिद्गौरादिभ्यश्च' (४ |१| ४१ ) से ङीष् प्रत्यय है । अत: यह प्रत्ययस्वर से अन्तोदात्त है। यह इस सूत्र से 'पक्व' शब्द उत्तरपद होने पर प्रकृतिस्वर से रहता है। ऐसे ही कलसीपेक्वः ।
(५) भ्राष्ट्रपेक्व: । यहां भाष्ट्र और पक्व शब्दों का पूर्ववत् सप्तमीतत्पुरुष समास है। 'भ्राष्ट्र' शब्द 'भ्रस्जिगमि०' (उणा० ४ । १६०) से ष्ट्रन्-प्रत्ययान्त है। प्रत्यय के नित् होने से यह 'नित्यादिर्नित्यम्' (६/६/१/१९९) से आद्युदात्त है। यह इस सूत्र से 'पक्व' शब्द उत्तरपद होने पर प्रकृतिस्वर से रहता है।