Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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षष्ठाध्यायस्य द्वितीयः पादः
अर्थ:- {अव्ययीभावसमासे} वर्ज्यमानवाचके अहरवयववाचिनि, रात्र्यवयववाचिनि चोत्तरपदे परि-प्रति-उप-अपा: पूर्वपदभूता: प्रकृतिस्वरा भवन्ति ।
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उदा०- (परि: ) त्रिगर्तात् परि इति परित्रिगर्तम् । परित्रिगर्तं वृष्टो दे॒वः । परसौवीरं वृ॒ष्टो देवः । परि॑सार्वसेन वृ॒ष्टो देवः । (प्रति:) पूर्वाह्णं पूर्वाह्णे प्रति इति प्रति॑पू॒र्वाह्णम् । प्रत्य॑प॒राह्णम् । प्रति॑पू॒र्वरा॒त्रम् । प्रत्य॑प॒ररात्रम् । (उप) पूर्वाह्णस्य समीपमिति उपपूर्वाह्णम् । उपा॑पराह्णम् । उप॑पूर्वरात्रम् । उपा॑ररा॒त्रम् । (अप: ) त्रिगर्ताद् अप इति अपत्रिगर्तम् । अप॑त्रिगर्तं दृष्टो देवः । अप॑सौवीरं वृष्टो देवः । अप॑सार्वसेनि वृष्टो देवः ।
आर्यभाषाः अर्थ-{अव्ययीभाव समास में} (वर्ज्यमानाहोरात्रावयवेषु) वर्ज्यमानवाचक, अहरवयववाची और रात्र्यवयववाची शब्दों के उत्तरपद होने पर (परिप्रत्युपापा:) परि, प्रति, उप, अप ( पूर्वपदम् ) पूर्वपद ( प्रकृत्या ) प्रकृतिस्वर से रहते हैं।
उदा०- - (परि) परित्रिगर्तं वृष्टो देवः । त्रिगर्त देश को छोड़कर बादल बरसा। परिसौवीरं वृष्टो देवः । सौवीर देश को छोड़कर बादल बरसा । परिसार्वसेनि वृष् देवः । सार्वसेनि देश को छोड़कर बादल बरसा । (प्रति) प्रतिपूर्वाह्णम् । प्रत्येक पूर्वाह्ण= दिन का पूर्व भाग । प्रत्येपराह्णम् । प्रत्येक अपराह्ण= दिन का अपर भाग । प्रतिपूर्वरात्रम् । प्रत्येक पूर्वरात्र=रात्रि का पूर्व भाग । प्रत्येपररात्रम् । प्रत्येक अपररात्र = रात्रि का अपर भाग। (उप) उपपूर्वाह्णम् । पूर्वाह्ण के समीप । उपोपराह्णम् । अपराह्ण के समीप । उपेपूर्वरात्रम् । पूर्वरात्र के समीप । उपपररात्रम् । अपररात्र के समीप । (अप) अपेत्रिगर्त वृष्टो देवः । त्रिगर्त देश को छोड़कर बादल बरसा। अपेसौवीरं वृष्टो देवः । सौवीर देश को छोड़कर बादल बरसा। अपेसार्वसेनि वृष्टो देवः । सार्वसेनि देश को छोड़कर बादल बरसा ।
'अपपरी वर्जने' (१।४।८८) से अप और परि शब्द ही वर्जनार्थक है अत: उनके योग में ही वर्ज्यमान उत्तरपद है, प्रति और उप शब्दों के योग में नहीं ।
सिद्धि - (१) परित्रिगर्तम् । यहां परि और त्रिगर्त शब्दों का 'अपपरिबहिरञ्चवः पञ्चम्या' (२1१1१२) से अव्ययीभाव समास है । 'परि' शब्द 'निपाता आद्युदात्ता:' (फिट्० ४।१२) उपसर्गाश्चाभिवर्जम् (फिट् ४।१३) से आद्युदात्त है। यह इस सूत्र से वर्ज्यमानवाची 'त्रिगर्त' शब्द उत्तरपद होने पर प्रकृतिस्वर से रहता है। ऐसे ही - परिसौवीरम्, परिसार्वसेनि ।
(२) प्रतिपूर्वाह्णम् । यहां प्रति और अहरवयववाची 'पूर्वाह्ण' शब्दों का 'अव्ययं विभक्ति०' (२1१1६ ) से यथा ( वीप्सा) अर्थ में अव्ययीभाव समास है। 'प्रति' शब्द पूर्ववत् आद्युदात्त है। यह इस सूत्र से अहरवचववाची 'पूर्वाह्ण' शब्द उत्तरपद होने पर प्रकृतिस्वर से रहता है। ऐसे ही-प्रत्येपराह्णम्, प्रति॑पूर्वरात्रम्, प्रत्येपररात्रम् ।