Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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षष्ठाध्यायस्य द्वितीयः पादः प्रकृतिस्वरः
(५) दायाचं दायादे।५। प०वि०-दायाद्यम् ११ दायादे ७।१।
स०-दायमादत्ते इति दायाद: (उपपदतत्पुरुष:) मूलविभुजादित्वात् क: प्रत्यय: । दायादस्य भाव:-दायाद्यम् । 'गुणवचनब्राह्मणदिभ्यः कर्मणि च' (५।१ ।१२४) इति ब्राह्मणादित्वाद् भावे ष्यञ् प्रत्ययः ।
अनु०-प्रकृत्या, पूर्वपदम्, तत्पुरुष इति चानुवर्तते । अन्वय:-तत्पुरुषे दायादे दायाद्यं पूर्वपदं प्रकृत्या।
अर्थ:-तत्पुरुष समासे दायाद-शब्दे उत्तरपदे दायाद्यवाचि पूर्वपदं प्रकृतिस्वरं भवति।
उदा०-विद्याया दायाद:-विद्यादायाद: । धनस्य दायाद:-धनायाद: । दाय:=भाग:, अंश इत्यर्थः।
आर्यभाषा अर्थ-(तत्पुरुषे) तत्पुरुष समास में (दायादे) दायाद शब्द उत्तरपद होने पर (दायाद्यम्) दायाद्यवाची (पूर्वपदम्) पूर्वपद (प्रकृत्या) प्रकृतिस्वर से रहता है।
उदा०-विद्यादायादः । विद्या के भाग को लेनेवाला। धनदायादः । धन के भाग को लेनेवाला। पूर्वजों से प्राप्त करने योग्य पदार्थ को दायाद्य' कहते हैं।
सिद्धि-(१) विद्यादायादः । विद्या+डस्+दायाद+सु। विद्यादायद+सु। विद्यादायादः ।
यहां विद्या और दायाद शब्दों का षष्ठी (२।२।८) से षष्ठीतत्पुरुष समास है। इस सूत्र से दायाद शब्द उत्तरपद होने पर दायाद्यवाची विद्या' पूर्वपद प्रकृतिस्वर से रहता है। 'संज्ञायां समजनिषद०' (३।३।९९) से विद्या' शब्द क्यप्-प्रत्ययान्त है और वहां क्यप् प्रत्यय के उदात्तवचन से अन्तोदात्त है।
(२) धनदायाद: । यहां धन और दायाद शब्दों का पूर्ववत् षष्ठीतत्पुरुष समास है। इस सूत्र से दायाद शब्द उत्तरपद होने पर दायाद्यवाची 'धन' शब्द प्रकृतिस्वर से रहता है। कृपृवृजिमन्दिनिधाञ्भ्य: क्युः' (द० उणा० ५ ।२६) में बहुल-वचन से केवल 'धाञ्' धातु से 'क्यु' प्रत्यय होने से 'धन' शब्द प्रत्ययस्वर से आधुदात्त है। प्रकृतिस्वरः
. (६) प्रतिबन्धि चिरकृच्छ्रयोः।६। प०वि०-प्रतिबन्धि ११ चिरकृच्छ्रयो: ७।२।।
कृदवृत्ति:-कार्यसिद्धिं प्रतिबध्नाति व्याहन्तीति प्रबन्धि। 'आवश्यकाधर्मण्ययोर्णिनि:' (३।३।१७०) इति आवश्यके णिनि: प्रत्ययः ।