Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
View full book text
________________
२४१
षष्ठाध्यायस्य द्वितीयः पादः उदा०-(सुखम्) गर्मनसुखम् । वचनसुखम् । व्याहर॑णसुखम्। (प्रियम्) गमनप्रियम् । वचनप्रियम् । व्याहर॑णप्रियम्।
आर्यभाषा अर्थ-(हिते) हितवाची (तत्पुरुषे) तत्पुरुष समास में (सुखप्रिययोः) सुख और प्रिय शब्द उत्तरपद होने पर (पूर्वपदम्) पूर्वपद (प्रकृत्या) प्रकृतिस्वर से रहता है।
उदा०- (सुख) गमनसुखम् । गमन-जाना परिणाम में हितकर है। वचनसुखम् । वचन-कहना परिणाम में हितकर है। व्याहरणसुखम् । व्याहरण बोलना परिणाम में हितकर है। (प्रिय) गमनप्रियम् । जाना परिणाम में हितकर है। वचनप्रियम् । कहना परिणाम में हितकर है। व्याहरणप्रियम् । बोलना परिणाम में हितकर है।
सिद्धि-गमनसुखम् । यहां गमन और सुख शब्दों का विशेषणं विशेष्येण बहुलम् (२।१।५६) से समानाधिकरण (कर्मधारय) तत्पुरुष समास है। 'गमन' शब्द ल्युट्-प्रत्ययान्त होने से लित् स्वर से लिति' (६।१।१८७) से प्रत्यय से पूर्ववर्ती अच् उदात्त है। इस सूत्र से यह सुख शब्द उत्तरपद होने पर प्रकृतिस्वर से रहता है। ऐसे ही-वचनसुखम्, आदि। प्रकृतिस्वर:
(१६) प्रीतौ च।१६। प०वि०-प्रीतौ ७१ च अव्ययपदम्। अनु०-प्रकृत्या, पूर्वपदम्, तत्पुरुषे, सुखप्रिययोरिति चानुवर्तते। अन्वयः-तत्पुरुषे सुखप्रिययो: पूर्वपदं प्रकृत्या, प्रीतौ च ।
अर्थ:-तत्पुरुषे समासे सुखप्रिययोरुत्तरपदयो: पूर्वपदं प्रकृतिस्वरं भवति, प्रीतौ च गम्यमानायाम्।
उदा०- (सुखम्) ब्राह्मणसुखं पायसम् । (प्रिय:) छात्रप्रियोऽनध्यायः । कन्याप्रियो मृदङ्गः ।
सुखप्रिययो: प्रीत्यात्मकत्वादिह प्रीतिग्रहणं तदतिशयद्योतनार्थम् ।
आर्यभाषा: अर्थ-(तत्पुरुष) तत्पुरुष समास में (सुखप्रिययोः) सुख और प्रिय शब्द उत्तरपद होने पर (पूर्वपदम्) पूर्वपद (प्रकृत्या) प्रकृतिस्वर से रहता है (च) और (प्रीतौ) वहां प्रीति अर्थ की प्रतीति होने पर।
उदा०-(सुख) ब्राह्मणसुखं पायसम् । खीर ब्राह्मण के लिये अत्यन्त सुखदायक है। (प्रिय) छात्रप्रियोऽनध्यायः । अनध्याय छुट्टी छात्रों के लिये अत्यन्त प्रिय है। कन्याप्रियो मृदङ्गः । मृदङ्ग वाद्यविशेष (मुरज) कन्याओं के लिये अत्यन्त प्रिय है।