Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् आधुदात्त है। यह इस सूत्र से ऐश्वर्यवाची तत्पुरुष समास 'पति' शब्द उत्तरपद होने पर प्रकृतिस्वर से रहता है।
(४) धान्यपति: । यहां धान्य और पति शब्दों का पूर्ववत् षष्ठीतत्पुरुष समास है। 'धान्य' शब्द 'धन धान्ये' (जु०प०) धातु से ऋहलोर्ण्यत्' (३।१।१२४) से ण्यत्-प्रत्ययान्त होने से 'तित् स्वरितम्' (६।१।१७९) से अन्तस्वरित है। यह इस सूत्र से ऐश्वर्यवाची तत्पुरुष समास में पति' शब्द उत्तरपद होने पर प्रकृतिस्वर से रहता है। प्रकृतिस्वरप्रतिषेधः
(१६) न भूवाचिदिधिषु।१६ | प०वि०-न अव्ययपदम्, भू-वाक्-चित्-दिधिषु १।१ ।
स०-भूश्च वाक् च चिच्च दिधिषूश्च एतेषां समाहार:-भूवाक्चिद्दिधिषु (समाहारद्वन्द्वः)।
अनु०-प्रकृत्या, पूर्वपदम्, तत्पुरुष, पत्यौ, ऐश्वर्ये इति चानुवर्तते। अन्वय:-ऐश्वर्ये तत्पुरुषे पत्यौ भूवाचिद्दिधिषु पूर्वपदं प्रकृत्या
न।
अर्थ:-ऐश्वर्यवाचिनि तत्पुरुष समासे पति-शब्दे उत्तरपदे भू, वाक्, चिद्, दिधिषू इत्येतानि पूर्वपदानि प्रकृतिस्वराणि न भवन्ति ।
उदा०-भुव: पति:-भूपति: । वाच: पति:-वाक्पतिः। चित: पति:चित्पति: । दिधिष्वा: पति:-दिधिषुपतिः। ___ आर्यभाषा8 अर्थ-(एश्वर्ये) ऐश्वर्यवाची (तत्पुरुषे) तत्पुरुष समास में (पत्यौ) पति-शब्द उत्तरपद होने पर (भूवाचिदिधिषु) भू, वाक्, चित्, दिधिषू ये (पूर्वपदम्) पूर्वपद (प्रकृत्या) प्रकृतिस्वर से (न) नहीं रहते हैं।
___ उदा०-(भू) भूपति: । भू-पृथिवी का ईश्वर (स्वामी) । वाक्पतिः । वाणी का ईश्वर। चित्पति: । चेतन आत्मा का ईश्वर । दिधिषूपति: । अपने भाई की विधवा स्त्री का ईश्वर। वह मनुष्य जिसने अपने भाई की विधवा स्त्री से विवाह किया हो।
सिद्धि-भूपति: । यहां भू और पति शब्दों का 'षष्ठी (२।२।८) से षष्ठीतत्पुरुष समास है। इस सूत्र से ऐश्वर्यवाची तत्पुरुष समास में पति शब्द उत्तरपद होने पर 'भू' शब्द के प्रकृतिस्वर का प्रतिषेध है। अत: समासस्य' (६।१।२१७) से अन्तोदात्त स्वर होता है। ऐसे ही-वाक्पतिः, चित्पति., दिधिषूपतिः ।