Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी- प्रवचनम्
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निवात:, तस्मिन्-निवाते (बहुव्रीहि: ) वातात् त्राणम् -वातत्राणम्, तस्मिन्
वातत्राणे (पञ्चमीतत्पुरुषः) ।
अनु०-प्रकृत्या, पूर्वपदम्, तत्पुरुषे इति चानुवर्तते ।
अन्वयः- तत्पुरुषे वातत्राणे निवाते पूर्वपदं प्रकृत्या ।
अर्थः- तत्पुरुषे समासे वातत्राणवाचिनि निवातशब्दे उत्तरपदे पूर्वपदं प्रकृतिस्वरं भवति ।
उदा०-कुटी एव निवातम्-कुटीनि॑वातम् । श॒मीनि॑वातम् । कुड्य॑निवातम् ।
अत्र कुट्यादिहेतुके निवाते कुट्यादयो वर्तमानाः सन्तः समानाधिकरणेन निवातशब्देन सह समस्यन्ते ।
आर्यभाषाः अर्थ- (तत्पुरुष) तत्पुरुष समास में (वातत्राण) वात- त्राण हवा से बचाव-वाची (निवाते) निवात शब्द उत्तरपद होने पर (पूर्वपदम् ) पूर्वपद (प्रकृत्या ) प्रकृतिस्वर से रहता है।
उदा० - कुटीनिवातम् । हवा से बचाव करनेवाली कुटीर । श॒मीनि॑वातम् । हवा से बचाव करनेवाली शमी (जांटी वृक्ष ) । कुड्येनिवातम् । हवा से बचाव करनेवाली कुड्य (दीवार) ।
सिद्धि - (१) कुटीनिवातम्। कुटी+सु+निवात+सु। कुटीनिवात+सु। कुटीनिवातम् ।
यहां कुटी और वातत्राणवाची 'निवात' शब्दों का 'मयूरव्यंसकादयश्च' (२1१1७१) से कर्मधारयतत्पुरुष समास है। इस सूत्र से वातत्राणवाची 'निवात' शब्द उत्तरपद होने पर 'कुटी' पूर्वपद प्रकृतिस्वर से रहता है । 'कुटी' शब्द गौरादिगण में पठित होने से प्रत्ययस्वर से अन्तोदात्त है। ऐसे ही - शमीनि॑िवातम् ।
(२) कुड्येनिवातम्। यहां 'कुड्य' और वातत्राणवाची निवात' शब्दों का पूर्वपद कर्मधारयतत्पुरुष समास है। इस सूत्र से 'निवात' शब्द उत्तरपद होने पर 'कुड्य' पूर्वपद प्रकृतिस्वर से रहता है। कुड्य' शब्द 'कवतेर्यत्' से यत्-प्रत्ययान्त होने से यतोऽनाव: ' ( ६ 1१/२०७ ) से आद्युदात्त है। कई आचार्यों का मत है कि 'कवतेर्क्यक्' से 'कुड्य' शब्द ड्यक्-प्रत्ययान्त होने से अन्तोदात्त है। कुड्येनिवातम् । (कई आचार्यों के मत में)। महर्षि दयानन्द द्वारा पंचपादी उणादिवृत्ति (४ ।११३) में 'कुंड्य' शब्द बहुलवचन से यक्-प्रत्ययान्त
व्याख्यात है।