Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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षष्ठाध्यायस्य प्रथमः पादः
२१७
यहां 'डुकृञ् करणें' (तना० अ० ) धातु से प्रथम हेतुमति च' (३।१।२६) से णिच्' प्रत्यय होता है। तत्पश्चात् णिजन्त 'कारि' धातु से लुङ् प्रत्यय लि लुङि' (२३|१|४४) से चिल विकरण-प्रत्यय और 'णिश्रिदुश्रुभ्यः कर्तरि चङ्' (३/४/४८) से 'चिल' के स्थान में 'चङ्' आदेश होता है। 'णेरनिटिं' (६/४/५१) से 'णिच्' का लोप तथा 'णौ चङ्युपधाया हस्व:' ( ७/४1९) से उपधा को ह्रस्व होकर, 'द्विर्वचनेऽचि' (१1१/५८) से रूपातिदेश को स्थानिवत् मानकर 'चङि (६ 1१1११) से 'कृ' को द्वित्व होता है । 'कुहोश्चु:' ( ७ । ४ । ६२ ) से अभ्यास के ककार को चकार आदेश होता है। 'सन्वल्लघुनि चङ्परेऽनग्लोपे (७।४।८३) से अभ्यास को सन्वद्भाव होकर 'सन्यतः ' (७/४ /७९ ) से अभ्यास को इत्व और 'दीर्घो लघोः' (७/४/९४) से उसे दीर्घ होता है। यहां 'न माङ्योगे' (६/४/७४) से अट् आगम का प्रतिषेध है । 'मा हि चीकरताम्' यहां 'हि' से उत्तर 'चीकरताम्' यह तिङन्त पद होने से 'तिङ्ङतिङ: ' ( ८1१/२८ ) से निघात = अनुदात्त प्राप्त था, किन्तु 'हि च' (८1१1३४) से उसका प्रतिषेध होता है । अत: 'चङ्' के अकार से धातु को अदुपदेश मानकर 'तास्यनुदात्तेत्०' (६।१।१८० ) से ल- सार्वधातुक 'ताम्' प्रत्यय अनुदात्त होता है। प्रत्यय-स्वर से 'चङ्' के अकार को ही उदात्तस्वर प्राप्त था । इस सूत्र से चङन्त अर्थात् 'चीकर' शब्द के उपोत्तम अक्षर को उदात्त होता है- चीकरेताम् । विकल्प पक्ष में प्रत्ययस्वर से उदात्त होता है-चीकरतम् ।
आकार उदात्तः
(६२) मतोः पूर्वमात् संज्ञायां स्त्रियाम् ॥ २१६ ।
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प०वि० - मतो: ५ ।१ पूर्वम् ११ आत् ११ संज्ञायाम् ७।१ स्त्रियाम् ७ । १ ।
अनु० - उदात्त इत्यनुवर्तते ।
अन्वयः - मतो: पूर्वम् आद् उदात्त:, स्त्रियां संज्ञायाम् ।
अर्थ:-मतो: पूर्वो य आकार: स उदात्तो भवति, तच्चेद् मत्वन्तं शब्दरूपं स्त्रीलिङ्गे संज्ञा भवति ।
उदा०-उ॒दुम्ब॒राव॑ती, पुष्क॒राव॑ती, वी॒र॒णाव॑ती, श॒रा॒व॑ती ।
आर्यभाषाः अर्थ-(मतो:) मतुप् प्रत्यय से (पूर्वम्) पूर्ववर्ती (आत्) आकार (उदात्तः) उदात्त होता है. यदि वह शब्द (स्त्रियाम्) स्त्रीलिङ्ग (संज्ञायाम्) संज्ञावाची हो । उदा॰-उदु॒म्न॒राव॑ती, पुष्क॒राव॑ती, वी॒र॒णाव॑ती, श॒रा॒व॑ती । ये नदी- विशेष की
संज्ञायें हैं।