Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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षष्ठाध्यायस्य प्रथमः पादः उदा०- (त्याग:) त्याग:, त्यागः । (राग:) राग:, राग: । (हास:) हास:, हास:। (कुह:) कुह:, कुहः । (श्वठः) श्वठः, श्वठः । (क्रथ:) क्रथः, कथः।
आर्यभाषा: अर्थ-(त्याग०कथानाम्) त्याग, राग, हास, कुह, श्वठ और क्रथ शब्दों को (विभाषा) विकल्प से (आदिः, उदात्त:) आधुदात्त होता है। ___उदा०-(त्याग:) त्यागे:, त्यागः। छोड़ना। (राग:) राग:, रागः। रंगना। (हास:) हास:, हास: । हंसना। (कुह:) कुह:, कुहः । चकित करनेवाला/डरानेवाला। (श्वठ:) श्वठः, श्वठः । धूर्त। (क्रथ:) क्रथः, क्रथ: । हिंसक।
सिद्धि-(१) त्याग: । त्यज्+घञ् । त्यज्+अ। त्याग्+अ। त्यागः ।
यहां त्यज हानौ' (भ्वा०प०) धातु से 'भावे' (३।३।१८) से भाव अर्थ में 'घञ्' प्रत्यय है। 'चजो: कु घिण्यतो:' (७।३।५२) से जकार को कुत्व गकार होता है। इस सूत्र से यह विकल्प से आधुदात्त होता है। विकल्प पक्ष में कर्षात्वतो: घञोऽन्तोदात्त:' (६।१ ।१५ ४) से अन्तोदात्त होता है। पहले उक्त सूत्र से अन्तोदात्त ही प्राप्त था।
(२) राग:। यहां रज रागे' (भ्वा० उ०) धातु से पूर्ववत् 'घञ्' प्रत्यय है। 'रजेश्च' (६।४।२६) से अनुनासिक (न्) का लोप होता है। स्वर-कार्य पूर्ववत् है।
(३) हास: । हसे हसने (भ्वा० उ०) धातु से पूर्ववत् 'घञ्' प्रत्यय है। 'अत उपधाया:' (७।२।११६) से उपधावृद्धि होती है। स्वर-कार्य पूर्ववत् है।
(४) कुहः । कुह+अच् । कुह+अ। कुह+सु। कुहः ।
यहां कुह विस्मापने; (चु०आ०) धातु से नन्दिग्रहिपचादिभ्यो ल्युणिन्यच:' (३।१।१३४) से पचादि 'अच्' प्रत्यय है। इस सूत्र से विकल्प से आधुदात्त होता है। चितः' (६।१।१५८) से अन्तोदात्त स्वर ही प्राप्त था। पक्ष में अन्तोदात्त स्वर भी होता
(५) श्वठः । श्वठ असंस्कारगत्यो:' (चु०उ०) से पूर्ववत् पचादि 'अच्' प्रत्यय है। स्वर-कार्य पूर्ववत् ।
(६) क्रथः । क्रथ हिंसार्थ:' (भ्वा०प०) धातु से पूर्ववत् पचादि अच् प्रत्यय है। स्वर-कार्य पूर्ववत् है। उपोत्तममुदात्तम्
(६०) उपोत्तमं रिति।२१४। प०वि०-उपोत्तमम् १।१ रिति ७।१ ।
स०-त्रिप्रभृतीनामन्तिममक्षरम्-उत्तमम्, उत्तमस्य समीपम्-उपोत्तमम् (अव्ययीभाव:)। र इद् यस्य स रित्, तस्मिन्-रिति (बहुव्रीहि:)।