Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् सिद्धि-उदुम्बरावती। उदुम्बर+मतुम्। उदुम्बर+मत्। उदुम्बरा+वत्। उदुम्बरावत् । उदुम्बरावत्+डीप् । उदुम्बरावती+सु। उदुम्बरावती।
यहां उदुम्बर शब्द से 'तदस्यास्त्यस्मिन्निति मतुप्' (५।२।६४) से 'मतुप्' प्रत्यय है। 'मादुपधायाश्च०' (६।२।९) से मतुप्' के मकार को वकार आदेश होता है। 'मतौ बहचोऽनजिरादीनाम्' (६।३।११९) से दीर्घ होता है। इस सूत्र से इस आकार को उदात्त स्वर होता है। स्त्रीत्व-विवक्षा में उगितश्च' (४।१।६) से डीप् प्रत्यय होता है। ऐसे ही-पुष्करावती, वीरणावती, शरावती। अन्तोदात्तः
(६३) अन्तोऽवत्याः ।२१७। प०वि०-अन्त: ११ अवत्या: ६।१। अनु०-उदात्त:, संज्ञायाम् इति चानुवर्तते। अन्वय:-संज्ञायाम् अवत्या अन्त उदात्त: । अर्थ:-संज्ञायां विषयेऽवती-शब्दान्तस्यान्त उदात्तो भवति । उदा०-अजिरवती, खदिरवती, हंसवती, कारण्डवती।
आर्यभाषा: अर्थ- (संज्ञायाम्) संज्ञाविषय में (अवत्याः) अवती शब्द जिसके अन्त में है उसे (अन्त:, उदात्त:) अन्तोदात्त होता है।
उदा०-अजिरवती, खदिरवती, हंसवती, कारण्डवती।
सिद्धि-अजिरवती। इस शब्द के अन्त में 'अवती' है। अत: इस सूत्र से इसे अन्तोदात्त स्वर होता है। ऐसे ही-खदिरवती, हंसवती, कारण्डवती। ये नदी-विशेष की संज्ञायें हैं। अन्तोदात्त:
(६४) ईवत्याः ।२१८। प०वि०-ईवत्या: ६।१। अनु०-उदात्त:, संज्ञायाम्, अन्त इति चानुवर्तते। अन्वय:-संज्ञायाम् ईवत्या अन्त उदात्त:। अर्थ:-संज्ञायां विषये ईवती-शब्दान्तस्यान्त उदात्तो भवति। उदा०-अहीवती। कृषीवती। मुनीवती।
आर्यभाषा: अर्थ- (संज्ञायाम्) संज्ञाविषय में (ईवत्याः) ईवती शब्द जिसके अन्त में उसे (अन्त उदात्त:) अन्तोदात्त होता है।