Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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षष्ठाध्यायस्य द्वितीयः पादः
२२५ से वह तत्पुरुष समास के पूर्वपद में प्रकृति स्वर से रहता है। ऐसे ही-सदृग्लोहितः, सदगमहान्।
(३) सदृशाश्वत:। यहां तुल्यार्थक सदृश' शब्द और श्वेत' शब्दों का पूर्ववत् कर्मधारय समास है। त्यदादिषु दृशोऽनालोचने कञ् च' (३।२० १६०) से 'सदृश' शब्द कञ्-प्रत्ययान्त है। शेष कार्य पूर्ववत् है। ऐसे ही-सदृशलोहितः, सदशमहान् ।
(४) शकुलाखण्ड: । शकुला+टा+खण्ड+सु । शङ्कुलाखण्ड+सु। शकुलाखण्डः ।
यहां शकुला और खण्ड शब्दों का तृतीया तत्कृतार्थेन गुणवचनेन' (२।२।२९) से तृतीया तत्पुरुष समास है। इसका तृतीयान्त शकुला' पूर्वपद शकु-पूर्वक 'ला आदाने (अदा०प०) धातु से वा०-'घार्थे कविधानम् (३।३१५८) से क-प्रत्ययान्त होने से अन्तोदात्त है। इस सूत्र से यह तत्पुरुष समास में प्रकृतिस्वर से रहता है।
(५) किरिकाण: । यहां किरि और काण शब्दों का पूर्ववत् तृतीया समास है। इसका तृतीयान्त किरि' पूर्वपद कृगृशृपृकुटिभिदिच्छिदिभ्यश्च' (उ० ३।१४४) से इकारप्रत्ययान्त होने से आन्तोदात्त है। इस सूत्र से यह तत्पुरुष समास में प्रकृतिस्वर से रहता है।
(६) अक्षशौण्डः । अक्ष+सुप्+शौण्ड+सु। अक्षशौण्ड+सु। अक्षशौण्डः ।
यहां अक्ष और शौण्ड शब्दों का सप्तमी शौण्डैः' (२।१।३९) से सप्तमी तत्पुरुष समास है। इसका सप्तम्यन्त 'अक्ष' पूर्वपद 'अशो देवने (उ० ३।६५) से स-प्रत्ययान्त होने से अन्तोदात्त है। इस सूत्र से यह तत्पुरुष समास में प्रकृतिस्वर से रहता है।
(७) पानेशौण्ड: । यहां पान और शौण्ड शब्दों का पूर्ववत् सप्तमी तत्पुरुष समास है। इसका सप्तम्यन्त 'पान' पूर्वपद ल्युट्-प्रत्ययान्त होने से लिति (६।१।१८७) से आधुदात्त है। इस सूत्र से यह तत्पुरुष समास में प्रकृतिस्वर से रहता है।
(८) शस्त्रीश्यामा । शस्त्री+सु+श्यामा+सु। शस्त्रीश्यामा+सु । शस्त्रीश्यामा। ___ यहां शस्त्री और श्यामा शब्दों का उपमानानि सामान्यवचनैः' (२।१।५४) से कर्मधारय तत्पुरुष समास है। इसका उपमानवाची शस्त्री' पूर्वपद डीष्-प्रत्ययान्त होने से अन्तोदात्त है। इस सूत्र से यह तत्पुरुष समास में प्रकृतिस्वर से रहता है।
(९) कुमुदश्येनी । यहां कुमुद और श्येनी शब्दों का पूर्ववत् कर्मधारय तत्पुरुष समास है। इसका कुमुद' पूर्वपद को मोदते इति कुमुदम्' 'मूलविभुजादि' (वा० ३।२।५) से क-प्रत्ययान्त और नविषयस्यानिसन्तस्य' (फिट २ ॥३) से आधुदात्त है। इस सूत्र से यह तत्पुरुष समास में प्रकृतिस्वर से रहता है।
(१०) हंसगद्गदा । यहां हंस और गद्गदा शब्दों का पूर्ववत् कर्मधारय तत्पुरुष समास है। इसका उपमानवाची 'हंस' पूर्वपद वृतृवदिहनिकमिकषिभ्यः सः' (उणा० ३।६५) से स-प्रत्ययान्त होने से अन्तोदात्त है। इस सूत्र से यह तत्पुरुष समास में प्रकृतिस्वर से रहता है।