Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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षष्ठाध्यायस्य प्रथमः पादः
१६३ (३) दधाति । धा+लट् । धा+तिम्। धा+शप्+ति। धा+o+ति। धा-धा+ति । ध-धा+ति । द-धा+ति। दधाति।
यहां 'डुधाञ् धारण-पोषणयोः' (जु०उ०) धातु से लट्' प्रत्यय है। 'अभ्यासे चर्च (८।४।५३) से अभ्यास को जश् दकार होता है। स्वर-कार्य पूर्ववत् है।
(४) जिहीते। हा+लट् । हा+त। हा+शप्+त । हा+o+त। हा-हा+त। ह-हा+त। हि-ही+त। झि-ही+त। जि+ही+ते। जिहीते।
यहां 'ओहाङ् गतौ' (जु०आ०) धातु से लट्' प्रत्यय है। भृञामित्' (७।४।७६) से अभ्यास के अकार को इत्व और जहातेश्च' (६।४।११६) से 'हा' को इत्व होता है। शेष कार्य जहाति' के समान है। तास्यनुदात्तेत्' (६।१।१८०) से ल-सार्वधातुक त' प्रत्यय अनुदात्त है। शेष स्वर-कार्य पूर्ववत् है।
(५) मिमीते। यहां 'माङ् माने (दि०आ०) धातु से लट्' प्रत्यय है। 'भृञामित् (७।४ १७६) से अभ्यास के अकार को इत्व और ई हल्यघो:' (६ ।४।११३) से 'मा' को ईत्व होता है। स्वर-कार्य पूर्ववत् है।
____ अनुदात्त पद में बहुव्रीहि समास इसलिये किया है कि 'मा हि स्म दधात्' यहां तिप प्रत्यय का लोप होने पर भी आधुदात्त हो जाये क्योंकि यहां तिप्' का त्' उदात्त गुण से रहित है।
आधुदात्तः
(३४) सर्वस्य सुपि।१८८ । प०वि०-सर्वस्य ६।१ सुपि ७।१।। अनु०-उदात्त:, आदिरिति चानुवर्तते। अन्वय:-सर्वस्य सुपि आदिरुदात्त: । अर्थ:-सर्व-शब्दस्य सुपि प्रत्यये परत आदिरुदात्तो भवति । उदा०-सर्वः । सर्वो। सर्व।
आर्यभाषा: अर्थ- (सर्वस्य) सर्व शब्द को (सुपि) सुप् प्रत्ययों के परे होने पर (आदिः, उदात्त:) आधुदात्त होता है।
उदा०-सर्वः । एक सब ने। सर्वो। दो सबों ने। सर्वे । सबों ने। सिद्धि-सर्वः । सर्व+सु। सर्व+स् । सर्वः ।
यहां 'सर्व' शब्द से सुप्-संज्ञक 'सु' प्रत्यय है। इसके परे होने पर सर्व' शब्द इस सूत्र से आधुदात्त होता है। ऐसे ही-सर्वो, सर्वे।