Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् गर्दभशाला के समान मलिन मनुष्य-खरकुटी। वधिका इव मनुष्य:-वधिका । वधिकाचमड़े के तसमे के समान सुदृढ़ मनुष्य-वधिका।
सिद्धि-चञ्चा। चञ्चा+कन्। चञ्चा+० । चञ्चा+सु । चञ्चा+० । चञ्चा।
यहां उपमानवाची चञ्चा' शब्द इस सूत्र से संज्ञा विषय में आधुदात्त होता है। लुम्मनुष्ये (५।३ ।१९८) से विहित कन्' प्रत्यय का लुप् होता है। ऐसे ही-दासी, खरकुटी, वधिका। आधुदात्तः
(४८) निष्ठा च व्यजनात् ।२०२। प०वि०-निष्ठा ११ च अव्ययपदम्, व्यच् १।१ अनात् १।१।
स०-द्वावचौ यस्मिँस्तद्-व्यच् (बहुव्रीहि:)। न आत्-अनात् (नञ्तत्पुरुषः)।
अनु०-उदात्त:, आदि:, संज्ञायाम् इति चानुवर्तते। अन्वय:-संज्ञायां निष्ठा च व्यज् आदिरुदात्त:, अनात् ।
अर्थ:-संज्ञायां विषये निष्ठान्तश्च व्यच्-शब्द आदिरुदात्तो भवति, स चेदादिराकारो न भवति ।
उदा०-दत्तः, गुप्तः, बुद्धः, अनादिति किम् ? त्रात:, आप्तः ।
आर्यभाषा: अर्थ-(संज्ञायाम्) संज्ञाविषय में (निष्ठा) निठान्त (द्वयच्) दो अचोंवाला शब्द (आदिः, उदात्त:) आधुदात्त होता है (अनात) यदि उस निष्ठा के आदि में आकार न हो।
उदा०-दत्तः। दिया हुआ। गुप्तः। रक्षा किया हुआ। बुद्धः । समझा हुआ। 'अनात्' का कथन इसलिये है कि यहां आधुदात्त न हो-त्रातः। पालन किया हुआ। आप्तः । पहुंचा हुआ।
सिद्धि-दत्तः । दा+क्त । दद्+त। दत्+त। दत्त+सु । दत्तः ।
यहां 'डुदाञ् दाने' (जु०3०) धातु से निष्ठा (३।२।१०२) से भूतकाल में निष्ठा-संज्ञक क्त' प्रत्यय है। क्तक्तवतू निष्ठा' (१।१।२५) से 'क्त' प्रत्यय की निष्ठा संज्ञा है। इस सूत्र से दो अचोंवाला, निष्ठान्त 'दत्त' शब्द आधुदात्त होता है। दो दद् घो:' (७।४।४६) से 'दा' के स्थान में 'दद्' आदेश होता है। 'खरि च' (८।४।५४) से 'दद्' के दकार को चर् तकार आदेश होता है।
(२) गुप्तः । गुपू रक्षणे' (भ्वा०प०) धातु से पूर्ववत् । (३) बुद्धः । बुध अवगमने' (भ्वा०प०) धातु से पूर्ववत् ।