Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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आद्युदात्तः
षष्ठाध्यायस्य प्रथमः पादः
(४६) शुष्कधृष्टौ । २०३ |
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प०वि० - शुष्क - धृष्टौ १।२ ।
स०- शुष्कश्च धृष्टश्च तौ - शुष्क धृष्टौ (इतरेतरयोगद्वन्द्वः ) अनु०-उदात्त:, आदि:-निष्ठा इति चानुवर्तते ।
अनु० - निष्ठा शुष्क धृष्टावादिरुदात्तौ ।
अर्थः- निष्ठान्तौ शुष्कधृष्टौ शब्दावादिरुदात्तौ भवतः । असंज्ञार्थः सूत्रारम्भः ।
उदा० - शुष्कः । धृष्टेः ।
आर्यभाषाः अर्थ- (निष्ठा) निष्ठान्त (शुष्कधृष्टौ ) शुष्क, धृष्ट शब्द (आदि:, उदात्त:) आद्युदात्त होते हैं।
उदा०
-शुष्केः । सूखा हुआ । धृष्टेः । चतुर बना हुआ ।
सिद्धि - (१) शुष्केः । शुष्+क्त । शुष्+क। शुष्क+सु । शुष्कः ।
यहां 'शुष शोषण' (दि० प० ) धातु से पूर्ववत् निष्ठासंज्ञक 'क्त' प्रत्यय है । 'शुष: क:' ( ८12148) से निष्ठा' के तकार को ककार आदेश होता है। इस सूत्र से निष्ठान्त 'शुष्क' शब्द आद्युदात्त होता है। 'शुषः क:' ( ८ / २ / ५१) यह त्रिपादी का है। उसे इस स्वर- कार्य में असिद्ध मानकर इसका निष्ठान्तत्व सिद्ध होता है।
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(२) धृष्टेः । धृष्+क्त । धृष्+त। धृष्+ट । धृष्ट+सु । धृष्टः ।
यहां 'ञिधृषा प्रागल्भ्ये' (स्वा० प०) धातु से पूर्ववत् निष्ठा -संज्ञक क्त प्रत्यय है । 'ष्टुना ष्टुः' (८ I४ /४०) से 'क्त' के तकार को टुत्व होता है। 'ष्टुना ष्टुः' (८/४/४०) त्रिपादी का है। इसे यहां असिद्ध मानकर इसका निष्ठान्तत्व सिद्ध होता है । स्वर- कार्य पूर्ववत् है ।
आद्युदात्तः
(५०) आशितः कर्ता । २०४ | प०वि० - आशित: १ । १ कर्ता १ । १ । अनु०-उदात्त:, आदि:, निष्ठा इति चानुवर्तते ।
अन्वयः - कर्ता निष्ठा आशित आदिरुदात्त: Į अर्थ:- कर्तृवाची निष्ठान्त आशित: शब्द आदिरुदात्तो भवति ।