Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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षष्ठाध्यायस्य प्रथमः पादः
अनु०-उदात्त:, आदि:, निष्ठा, विभाषा इति चानुवर्तते । अन्वयः - छन्दसि निष्ठा जुष्टार्पिते च विभाषा आदिरुदात्ते । अर्थ:-छन्दसि विषये निष्ठान्तौ जुष्टार्पितौ शब्दौ विकल्पेनादिरुदात्तौ
भवतः ।
२०६
उदा०-(जुष्टः) जुष्टेः, जुष्टः । (अर्पितः ) अर्पितः, अ॒र्पतः ।
आर्यभाषाः अर्थ-(छन्दसि ) वेदविषय में (निष्ठा) निष्ठान्त (जुष्टार्पिते) जुष्ट और अर्पित शब्द (विभाषा) विकल्प से (आदि:, उदात्त:) आदि उदात्त होते हैं। -जुष्टः । प्रिय/सेवित । अर्पितः । भेंट किया गया।
उदा०
सिद्धि - (१) जुष्टेः । जुष्+क्त । जुष्+त। जुष्+ट। जुष्ट+सु। जुष्टः।
यहां 'जुषी प्रीतिसेवनयो:' ( तु० आ०) धातु से पूर्ववत् निष्ठा-संज्ञक 'क्त' प्रत्यय है। 'ष्टुना ष्टुः' (८/४/४०) से 'क्त' के तकार को टुत्व टकार होता है। इस सूत्र से निष्ठान्त 'जुष्ट' शब्द छन्दविषय में आद्युदात्त होता है । और विकल्प-पक्ष में प्रत्यय-स्वर से अन्तोदात्त होता है- जुष्टः । लौकिकभाषा में प्रत्ययस्वर से अन्तोदात्त ही होता है - जुष्ट: ।
(२) अर्पितः । ऋ + णिच् । ऋ+पुक् + इ । अरप्+इ। अरप्+इ+त। अर्पित+सु । अर्पितः ।
यहां 'ऋ गतौ' (जु०प०) धातु से प्रथम हेतुमति च' (३ । १ । २६ ) से णिच् प्रत्यय है । 'अर्तिही०' (७ | ३ | ३६ ) से णिच्' परे होने पर 'ऋ' धातु को 'पुक्' आगम होता है। 'घुगन्तलघूपधस्य चं' (७/३/८६) से 'ऋ' धातु को पुगन्तलक्षण गुण (अर्) होता है। इस सूत्र से निष्ठान्त ‘अर्पित' शब्द छन्दविषय में आद्युदात्त होता है। शेष स्वर- कार्य पूर्ववत् है ।
आद्युदात्त:
(५३) नित्यं मन्त्रे । २०७ ।
प०वि०-नित्यम् १।१ मन्त्रे ७ । १ ।
अनु०-उदात्त:, आदि:, निष्ठा, जुष्टार्पित इति चानुवर्तते । अन्वयः-मन्त्रे निष्ठा जुष्टार्पिते नित्यमादिरुदात्ते । अर्थ:-मन्त्रे विषये निष्ठान्तौ जुष्टार्पितौ शब्दौ नित्यमादिरुदात्तौ
भवतः ।