Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् (२) कुमुद्वान् । कुमुद ड्मतुम्। कुमुद्+मत्। कुमुद्+वत्। कुमुद्वत्+सु। कुमुद्वान्।
यहां कुमुद शब्द से कुमुदनडवेतसेभ्यो ड्मतु (४।२।८६) से ड्मतुप है। यह अनुदात्तौ सुप्पिती (३।१।४) से अनुदात्त है। वा०-डित्यभस्यापि टेर्लोप:' (६।४।१४३) से कुमुद के उदात्त अकार का लोप होता है। इस सूत्र से अनुदात्त के परे होने पर उदात्त का लोप होने से अनुदात्त को अन्तोदात्त स्वर होता है। कुमुद' शब्द पूर्ववत् अन्तोदात्त है। ऐसे ही-नड्वान्, वेतस्वान् ।
विशेष: काशिकावृत्ति में इस सूत्र का आधुदात्तपरक अर्थ किया है जो कि पाणिनिमुनि के प्रकरण के प्रतिकूल है। गुरुवर पं० विश्वप्रिय शास्त्री के शिष्य पं० वेदव्रत शास्त्री की हस्तलिखित वृत्ति में अन्तोदात्तपरक अर्थ है। अन्तोदात्तः
(५) धातोः।१५६। वि०-धातो: ६।१। अनु०-अन्त:, उदात्त इति चानुवर्तते । अन्वय:-धातोरन्त उदात्तः । अर्थ:-धातोरन्त उदात्तो भवति। उदा०-पचति। पठति। ऊर्णोति । गोपायति । याति ।
आर्यभाषा: अर्थ-(धातोः) धातु का (अन्त:) अन्तिम अच् (उदात्त:) उदात्त होता है।
उदा०-पर्चति । वह पकाता है। पठति । वह पढ़ता है। ऊर्णोति । वह आच्छादित करता है। गोपायति । वह रक्षा करता है। याति। वह जाता है।
सिद्धि-(१) पचति । पच्+लट् । पच्+तिम् । पच्+शप्+ति। पच्+अ+ति। पचति ।
यहां डुपचष् पाके' (भ्वा०उ०) धातु से लट् प्रत्यय है। इस सूत्र से 'पच्' धातु को अन्तोदात्त होता है। 'शप' और 'तिप्' प्रत्यय पित् होने से 'अन्तोदातौ सपपितौ (३।१।४) से अनुदात्त हैं। उदात्तादनुदात्तस्य स्वरित:' (८।४।६५) से 'शप्' का अनुदात्त अकार स्वरित होता है। स्वरितात् संहितायामनुदात्तानाम् (१।३।३९) से 'तिप्' के अनुदात्त इकार को एकश्रुति स्वर होता है।
(२) पठेति । 'पठ व्यक्तायां वाचि' (भ्वा०प०) से पूर्ववत् ।
(३) ऊर्णोति । यहां ऊर्जुन आच्छादने (अदाउ०) धातु से लट्' प्रत्यय। 'अदिप्रभृतिभ्यः शप:' (२।४।७२) से 'शप' का लुक होता है।