Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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षष्ठाध्यायस्य प्रथमः पादः स्त्रीत्व-विवक्षा में 'अजाद्यतष्टाप्' (४।१।४) से टाप् प्रत्यय है। रथं यातीति-रथस्या (उपपदतत्पुरुष)।
(४) किष्कुः । किम्+कृ+डु। किम्+सुट्+कृ+उ। किम्+स्++उ। कि०+स्++उ। कि+ष्+क+उ। किष्कु+सु। किष्कुः।
यहां 'किम्' शब्द उपपद होने पर 'कृ' धातु से औणादिक 'डु' प्रत्यय है। इस सूत्र से संज्ञा-विषय में 'कृ' धातु के क-वर्ण से पूर्व 'सुट' आगम होता है। वा०-डित्यभस्यापि टेर्लोप:' (६।४।१४३) से 'कृ' के टि-भाग (ऋ) का लोप होता है। किम्' के मकार का लोप और सकार को षत्व निपातन से होता है। किं करोतीति किष्कुः (उपपदतत्पुरुष)।
(५) किष्किन्धा । किम्+ध:+क। किम्-किम्+धा+अ। किम्+सुट्+किम्+ध्+अ। किष्किन्ध+टा। किष्किन्धा+सु। किष्किन्धा।
___ यहां किम्' शब्द उपपद होने पर 'धा' धातु से 'आतोऽनुपसर्गे कः' (३।२।३) से 'क' प्रत्यय है। 'किम्' शब्द को द्वित्व और उसके मकार का लोप निपातन से होता है। इस सूत्र से संज्ञा-विषय में किम्' के क-वर्ण से पूर्व सुट् आगम होता है और निपातन से षत्व होता है।
विशेष: (१) काशिकावृत्ति में कारस्करो वृक्षः' इसकी पाणिनीय सूत्र मानकर व्याख्या की है। यह पारस्करप्रभृतीनि च संज्ञायाम्' इसी सूत्र से सिद्ध है।
(२) पारस्कर । यह सिन्ध का पूर्वी जिला थर-पारकर जान पड़ता है। 'थर' रेगिस्तानवाची 'थल' का सिन्धी रूप है। कच्छ के इरिण या रन्न प्रदेश के उत्तर का समस्त भूभाग 'पारकर' देश था (पाणिनिकालीन भारतवर्ष, पृ० ६६) ।
(३) रथस्या। महाभारत के आदिपर्व में सरस्वती और गंडकी के बीच की सात पावन नदियों में इसका नाम 'रथस्था' है। रथस्था पंचाल देश की रामगंगा नदी थी जो ऊपरले भाग में अब भी रहुत' कहाती है (पाणिनिकालीन भारतवर्ष, पृ० ५४)।
(४) किष्कु । अर्थशास्त्र के अनुसार ३२ अंगुल या दो फुट का साधारण किष्कु होता था। आराकश एवं राजबढ़ई का किष्क ४२ अंगुल या साढ़े ३१ इंच लम्बा माना जाता था। किष्कु ही यहां का पुराना गज था (पाणिनिकालीन भारतवर्ष, पृ० २४८)।
(५) किष्किन्धा । यह गोरखपुर के पास का प्राचीन खुखुदों था (पाणिनिकालीन भारतवर्ष, पृ० ७६)।
।। इति संहिता (सन्धि) प्रकरणम् ।।