Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् उदा०-(ओम्) कन्योमित्यवोचत् । कन्या ने 'ओम्' ऐसा कहा। (आङ्) आड्+ऊढा ओढा। अद्य+ओढा अद्योढा। आज विवाहिता। कदा+ओढा-कदोढा। कब विवाहिता। तदा+ओढातदोढा। तब विवाहिता। _ सिद्धि-(१) कन्योम् । कन्या+ओम् । कन्योम्।
यहां कन्या के अ-वर्ण (आ) से उत्तर 'ओम्' शब्द के परे होने पर इस सूत्र से पररूप (ओ) एकादेश होता है।
(२) अद्योढा । आड्+ऊढा ओढा। अद्य+ओढा । अद्योढा ।
यहां प्रथम आङ् और ऊढा शब्दों का कुगतिप्रादयः' (२।२।१८) से प्रादितत्पुरुष समास होकर 'आद् गुणः' (६।१९८५) से आकार और ऊकार को गुण रूप (ओ) एकादेश होता है। 'अद्य+ओढा' इस स्थिति में अ-वर्ण से उत्तर आङ् परे होने पर इस सूत्र से पररूप (ओ) एकादेश होता है। 'आङ्+ऊढा ओढा' यहां आङ् और अनाडू के एकादेश को 'अन्तादिवच्च' (६ 1१1८३) से पूर्व का अन्तवत् मानकर 'आङ्' के ग्रहण से गृहीत किया जाता है। ऐसे ही-कदोढा, तदोढा। पररूप-एकादेशः
(२५) उस्यपदान्तात्।६६। प०वि०-उसि ७१ अपदान्तात् ५।१।
स०-पदस्यान्त:-पदान्तः, न पदान्त:-अपदान्त:, तस्मात्-अपदान्तात् (षष्ठीतत्पुरुषगर्भितनञ्तत्पुरुष:)।
अनु०-संहितायाम्, एक:, पूर्वपरयोः, आत्, पररूपमिति चानुवर्तते । अन्वयः-संहितायाम् आद् उसि पूर्वपरयो: पररूपमेक: ।
अर्थ:-संहितायां विषये अ-वर्णाद् उसि प्रत्यये परत: पूर्वपरयो: स्थाने पररूपमेकादेशो भवति।
उदा०-ते भिन्द्युः । ते छिन्द्युः । तेऽदुः । तेऽयुः ।
आर्यभाषा: अर्थ-(संहितायाम्) संन्धि-विषय में (आत्) अ-वर्ण से उत्तर (उसि) उस् प्रत्यय परे होने पर (पूर्वपरयो:) पूर्व-पर के स्थान में (पररूपम्) पररूप (एक:) एकादेश होता है।
उदा०-ते भिन्युः । वे सब विदारण करें। ते छिन्युः । वे सब छेदन करें। तेऽदुः । उन्होंने दान किया। तेऽयुः। उन्होंने प्राप्त किया।