Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् स्वार्थेऽण् प्रत्यय: । गम्यमानार्थस्य वाक्यस्य स्वरूपेणोपादानम्-वाक्याध्याहारः। प्रतियत्नश्च, वैकृतं च वाक्याध्याहारश्च ते-प्रतियत्नवैकृतवाक्याहारा:, तेषु-प्रतियत्नवैकृतवाक्याध्याहारेषु (इतरेतरयोगद्वन्द्व:)।
अनु०-संहितायाम्, सुट, कात्, पूर्वः, करोताविति चानुवर्तते।
अन्वय:-संहितायाम् उपात् प्रतियत्नवैकृतवाक्याध्याहारेषु करोतौ कात् पूर्व: सुट्।
अर्थ:-संहितायां विषये उपाद् उत्तरस्मिन् प्रतियत्लवैकृतवाक्याध्याहारेष्वर्थेषु करोतौ परत: कात् पूर्व: सुडागमो भवति । ___उदा०-(प्रतियत्न:) एधो दकस्योपस्कुरुते । काण्डं गुडस्योपस्कुरुते। (वैकृतम्) उपस्कृतं भुङ्क्ते, उपस्कृतं गच्छति । (वाक्याध्याहारः) उपस्कृतं जल्पति, उपस्कृतमधीते।
आर्यभाषा: अर्थ-(संहितायाम्) सन्धिविषय में (उपात्) उप शब्द से उत्तर (प्रतियत्नवैकृतवाक्याध्याहारेषु) प्रतियत्न, वैकृत, वाक्याध्याहार अर्थों में विद्यमान (करोतौ) कृ' धातु के परे होने पर (कात्) क-वर्ण से (पूर्व:) पहले (सुट्) सुट् आगम होता है।
किसी पदार्थ में आधिक्य के लिये गुणान्तरों का आधान करना अथवा बढ़े हुये गुणों को उसी अवस्था में रखने के लिये जो चेष्टा करना है वह प्रतियत्न' कहाता है। विकृत को ही वैकृत कहते हैं, यहां प्रज्ञादिभ्यश्च' (५।४।३८) से स्वार्थ में अण् प्रत्यय है। प्रतीयमान अर्थवाले वाक्य का स्वरूप से कथन करना-वाक्याध्याहार कहाता है।
उदा०-(प्रतियत्न) एधो दकस्योपस्कुरुते । एध इन्धन जल के गुणों को बदलता है। शीतल से उष्ण बनाता है। काण्डं गुडस्योपस्कुरुते । काण्ड गुड के गुणों को बदलता है। (वैकृत) उपस्कृतं भुङ्क्ते । बिगाड़कर खाता है। उपस्कृतं गच्छति। बिगाड़कर चलता है। (वाक्याध्याहार) उपस्कृतं जल्पति । वाक्य-अध्याहारपूर्वक जैसे-तैसे बकता है। उपस्कृतमधीते। वाक्य-अध्याहारपूर्वक जैसे-तैसे पढ़ता है।
सिद्धि-(१) उपस्कुरुते । उप+कुरुते। उप+सुट्+कुरुते। उप+स्+कुरुते। उपस्कुरुते।
यहां 'उप' उपसर्ग से उत्तर प्रतियत्नार्थक कृ' धातु परे होने पर इस सूत्र से क-वर्ण से पूर्व सुट्' आगम होता है। ‘एधो दकस्योपस्कुरुते' यहां कृञः प्रतियत्ने (२।३।५३) से षष्ठीविभक्ति और गन्धनावक्षेपणसेवनसाहसिक्यप्रतियत्नप्रकथनोपयोगेषु कृषः' (११३ ३२) से आत्मनेपद होता है। ऐसे ही-काण्डं गुडस्योपस्कुरुते ।