Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् आर्यभाषा: अर्थ-(संहितायाम्) सन्धि-विषय एवं (छन्दसि) वेदविषय में (दीर्घात्) दीर्घ-वर्ण से उत्तर (इचि) इच् और (जसि) जस् प्रत्यय परे होने पर (पूर्वपरयो:) पूर्व-पर के स्थान में (वा) विकल्प से (पूर्वसवर्ण:) पूर्वसवर्ण (दीर्घः) दीर्घ (एक:) एकादेश (न) नहीं होता है।
उदा०-मारुतीश्चतस्रः (का०सं०. ११ ।१०)। मारुत्यश्चतस्रः । चार मारुतियां । पिण्डी:, पिण्ड्यः । सब पिण्डियां। वाराही, वाराह्यौ। दो वाराहियां। उपानही (मै०सं० ४।४।६)। उपनह्यौ (लौ०गृ० ३।७)। दो उपानहियां (जूतियां)।
सिद्धि-(१) मारुती: । मारुती+जस्। मारुती+अस् । मारुतीस् । मारुती: ।
यहां मारुती शब्द के दीर्घ वर्ण (ई) से उत्तर जस् प्रत्यय परे होने पर पूर्व-पर के स्थान में छन्दविषय में इस सूत्र से पूर्वसवर्ण दीर्घ एकादेश होता है। ऐसे ही पिण्डी' शब्द से-पिण्डी:।
(२) मारुत्यः । मारुती+जस्। मारुती+अस्। मारुत्य्+अस् । मारुत्यः ।
यहां विकल्प पक्ष में पूर्वसवर्ण दीर्घ एकादेश नहीं है, अपितु 'इको यणचि' (६।११७५) से यण् आदेश होता है। ऐसे ही पिण्डी' शब्द से-पिण्ड्यः ।
(३) वाराही। वाराही+औ। वाराही।
यहां वाराही' शब्द के दीर्घ-वर्ण (ई) से उत्तर इजादि औ/औट् प्रत्यय परे होने पर छन्दविषय में इस सूत्र से पूर्वसवर्ण दीर्घ एकादेश होता है। ऐसे ही उपानही' शब्द से-उपानही।
(४) वाराह्यौ। यहां विकल्प-पक्ष में पूर्वसवर्ण दीर्घ एकादेश नहीं है, अपितु इको यणचि (६।१।७५) से यण आदेश होता है। ऐसे ही उपानही' शब्द सेउपानह्यौ। पूर्वरूप-एकादेशः
(३५) अमि पूर्वः ।१०६। प०वि०-अमि ७।१ पूर्व: १।१।। अनु०-संहितायाम्, एक:, पूर्वपरयोरिति चानुवर्तते। अन्वय:-संहितायाम् अकोऽमि पूर्वपरयो: पूर्व एकः ।
अर्थ:-संहितायां विषयेऽक उत्तरस्माद् अमि प्रत्यये परत: पूर्वपरयो: स्थाने पूर्वरूप एकादेशो भवति ।
उदा०-वृक्षम्, प्लक्षम्, अग्निम्, वायुम् ।