Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम्
उदा० - सेदुराजा क्षयति चर्षणीनाम् (ऋ० १ । ३२ । १५ ) । सौषधीरनुरुध्यसे (ऋ० ८।४३।३) ।
अत्र पादग्रहणेन श्लोकपादस्यापि ग्रहणं केचिदिच्छन्ति । तेनेदमपि सिद्धं भवति
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सैष दाशरथी राम: सैष राजा युधिष्ठिरः । सैष कर्णो महात्यागी सैष भीमो महाबलः । ।
आर्यभाषाः अर्थ - ( संहितायाम् ) सन्धि - विषय और (छन्दसि ) वेदविषय में (अचि) अच्-वर्ण परे होने पर (सः) 'स:' इस शब्द के ( सुलोपः ) सु' प्रत्यय का लोप होता है। (लोपे) लोप होने पर ( चेत् ) यदि वहां (पादपूरणम् ) पाद = मन्त्रचरण की पूर्ति होती हो ।
उदा०
- सेदुराजा क्षयति चर्षणीनाम् (ऋ० १1३२ । १५ ) । सौषधीरनुरुध्यसे (720 ( 18313) 1
यहां कई वैयाकरण 'पाद' शब्द के ग्रहण से श्लोकपाद का भी ग्रहण मानते हैं। उससे यह पद्य भी सिद्ध हो जाता है
सैष दाशरथी राम: सैष राजा युधिष्ठिरः ।
सैष कर्णो महात्यागी सैष भीमो महाबलः । ।
सिद्धि- (१) सेद् । तत्+सु । त अ+स् । त+स् । सस्+इत् । स०+इत् । सेत् । सेद् ।
यहां 'तद्' शब्द से 'सु' प्रत्यय है। 'सस्+इत्' इति स्थिति में इत् शब्द का अच्-वर्ण (इ) परे होने पर 'सस्' के 'सु' प्रत्यय का इस सूत्र से पादपूर्ति में लोप होता है। तत्पश्चात् 'आद्गुण:' ( ६ 1१1८५ ) से पूर्व - पर के स्थान में गुणरूप (ए) एकादेश होता है। इस सन्धि से मन्त्र में छन्द की पादपूर्ति होती है।
(२) सौषधी: । सस् + औषधीः । स० + औषधीः ।
यहां इस सूत्र से पादपूर्ति में 'सु' प्रत्यय का लोप होकर 'वृद्धिरेचिं' ( ६ । १।८६) से पूर्व-पर के स्थान में वृद्धिरूप (औ) एकादेश होता है। इस सन्धि से मन्त्र में गायत्री छन्द की पादपूर्ति होती है।
सैषः । सस्+एषः । स० + एषः । सैषः ।
यहां 'सस्' शब्द के 'सु' प्रत्यय का इस सूत्र से श्लोक की पादपूर्ति में कई वैयाकरण लोप मानते हैं। तत्पश्चात् पूर्व-पर के स्थान में वृद्धिरूप (ऐ) एकादेश होता है। 'सु' प्रत्यय के लोप होने पर उक्त सन्धि होने से अनुष्टुप् छन्द का अष्टाक्षरी पाद (चरण) पूरण हो जाता है।