Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् अर्थ:-संहितायां विषयेऽक उत्तरस्मात् प्रथमयो:=प्रथमायां द्वितीयायां च विभक्तावचि परत: पूर्वपरयो: स्थाने पूर्वसवर्णदीर्घरूप एकादेशो भवति ।
उदा०-अग्नी। वायू । वृक्षाः । प्लक्षाः । वृक्षान् । प्लक्षान्।
आर्यभाषा: अर्थ-(संहितायाम्) सन्धि-विषय में (अक:) अक् वर्ण से उत्तर (प्रथमयो:) प्रथमा और द्वितीया विभक्ति विषयक (अचि) अच् वर्ण परे होने पर (पूर्वपरयो:) पूर्व-पर के स्थान में (पूर्वसवर्ण:) पूर्वसवर्ण (दीर्घः) दीर्घरूप (एक:) एकादेश होता है।
उदा०-अग्नी। दो अग्नियों ने/को। वायू । दो वायुओं ने/को। वृक्षाः । बहुत वृक्ष। प्लक्षाः । बहुत प्लक्ष (पिलखण)। वृक्षान्। बहुत वृक्षों को। प्लक्षान् । बहुत प्लक्षों को।
सिद्धि-(१) अग्नी । अग्नि+औ। अग्नी।
यहां अग्नि शब्द के अक् (इ) से उत्तर प्रथमा-विभक्ति के अच् (औ) परे होने पर पूर्व-पर के स्थान में इस सूत्र से पूर्वसवर्ण दीर्घ (ई) एकादेश होता है। ऐसे ही 'औट्' (द्वितीया-द्विवचन) परे होने पर भी-अग्नी।
(२) वायू । वायु+औ। वायू।
यहां वायु शब्द के अक् (उ) से उत्तर प्रथमा-विभक्ति के अच् (औ) परे होने पर पूर्व-पर के स्थान में इस सूत्र से पूर्वसवर्ण दीर्घ (ऊ) एकादेश होता है। ऐसे ही औट्' (द्वितीया-द्विवचन) परे होने पर-वायू ।
(३) वृक्षाः । वृक्ष+जस् । वृक्ष+अस् । वृक्षास् । वृक्षारु। वृक्षार् । वृक्षाः ।
यहां वृक्ष शब्द के अक् (अ) से उत्तर प्रथमा-विभक्ति के अच् (अ) परे होने पर पूर्व-पर के स्थान में इस सूत्र से पूर्वसवर्ण दीर्घ (आ) एकादेश होता है। ऐसे ही-प्लक्ष शब्द से-प्लक्षाः।
(४) वृक्षान् । वृक्ष+शस् । वृक्ष+अस्। वृक्षास् । वृक्षान् ।
यहां वृक्ष शब्द के अक् (अ) से उत्तर द्वितीया-विभक्ति के अच् (अ) परे होने पर पूर्व-पर के स्थान में इस सूत्र से पूर्वसवर्ण दीर्घ (आ) एकादेश होकर तस्माच्छसो न: पुंसि' (६।१।१००) से शस् के सकार को नकार आदेश होता है। ऐसे ही प्लक्ष शब्द से-प्लक्षान्। नकार-आदेशः
(३१) तस्माच्छसो नः पुंसि।१०२। प०वि०-तस्मात् ५।१ शस: ६ १ न: ११ पुंसि ७।१। अनु०-संहितायाम् इत्यनुवर्तते।