Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् आर्यभाषा: अर्थ-(संहितायाम्) सन्धि-विषय में (ओत:) ओ-वर्ण से उत्तर (अम्शसो:) अम् और शस् प्रत्यय परे होने पर (पूर्वपरयो:) पूर्व-पर के स्थान में (आ:) आकार रूप (एक:) एकादेश होता है।
उदा०-त्वं गां पश्य । तू गौ को देख । त्वं गाः पश्य । तू गौओं को देख। त्वं द्या पश्य । तू द्युलोक को देख । त्वं द्या: पश्य । तू द्युलोकों को देख।
सिद्धि-(१) गाम् । गो+अम् । ग् आ+अम् । गा+अम् । गाम्।
यहां 'गो' शब्द के ओकार से उत्तर अम्' प्रत्यय परे होने पर इस सूत्र से पूर्व-पर के स्थान में आकार रूप एकादेश होता है।
(२) गा: । गो+शस्। ग् आ+अस्। गा+अस् । गाः।
यहां गो' शब्द के ओकार से उत्तर शस् प्रत्यय परे होने पर पूर्व-पर के स्थान में आकार रूप एकादेश होता है। ऐसे ही ओकारान्त 'द्यो' शब्द से-त्वं द्यां पश्य, त्वं द्या: पश्य।
गाम् यहां 'गोतो णित्' (७।१।९०) से अम् को णिद्वत् होकर 'अचो मिति (७।२।११५) से वृद्धि प्राप्त है, वृद्धि होने पर आकार-आदेश सम्भव नहीं है, अत: वृद्धि को बाध कर यह आकार आदेश होता है। पररूप-एकादेशः
(२३) एङि पररूपम् ।६४। प०वि०-एङि ७।१ पररूपम् १।१।
अनु०-संहितायाम्, एक:, पूर्वपरयो:, आत्, उपसर्गात्, धाताविति चानुवर्तते।
अन्वयः-संहितायाम् आद् उपसर्गाद् एङि धातौ पूर्वपरयो: पररूपमेक: ।
अर्थ:-संहितायां विषयेऽकारान्ताद् उपसर्गाद् एडादौ धातौ परत: पूर्वपरयो: स्थाने पररूपमेकादेशो भवति। 'वृद्धिरेचि' (६।१।८८) इत्यस्यायमपवादः।
उदा०-उपेलयति । प्रेलयति । उपोषति । प्रोषति ।
आर्यभाषा: अर्थ- (संहितायाम्) सन्धि-विषय में (आत्) अकारान्त (उपसर्गात्) उपसर्ग से उत्तर (एडि) एडादि (धातौ) धातु परे होने पर (पूर्वपरयोः) पूर्व-पर के स्थान में (पररूपम्) पररूप (एक:) एकादेश होता है। यह वृद्धिरेचिं' (६।१।८८) का अपवाद है।