Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
View full book text
________________
पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम्
(४) कुण्ड । कुण्ड+सु । कुण्ड+अम् । कुण्ड+म् । कुण्ड+ 0। कुण्ड । हे 'कुण्ड' शब्द से पूर्ववत् 'सु' प्रत्यय है और उसे 'अतोऽम्' (७।१।२४) से 'अम्' आदेश होता है। 'अमि पूर्व:' ( ६ । १ । १०४) से अकार को पूर्वरूप एकादेश होकर इस सूत्र से ह्रस्वान्त 'कुण्ड' शब्द से परे सम्बुद्धि-संज्ञक हल् 'म्' का लोप होता है। लोपादेश:
50
(११) शेश्छन्दसि बहुलम् ।७० । प०वि०-शे: ६।१ छन्दसि ७ ।१ बहुलम् १ । १ । अनु० - लोप इत्यनुवर्तते । अन्वयः-छन्दसि शेर्बहुलं लोप: ।
1
अर्थ:-छन्दसि विषये 'शि' इत्येतस्य प्रत्ययस्य बहुलं लोपो भवति उदा०-या क्षेत्रा, यानि क्षेत्राणि (शौ० सं० १४ । २।७) या वना ( शौ०सं० १४ । २ । ७) । यानि वनानि ।
आर्यभाषाः अर्थ- (छन्दसि ) वेदविषय में (शे:) 'शि' इस प्रत्यय का (बहुलम्) प्रायश: (लोपः) लोप होता है।
उदा०-या क्षेत्रा, यानि क्षेत्राणि (शौ० सं० १४/२/७ ) या वना (शौ०सं० १४/२/७ ) । यानि वनानि ।
सिद्धि - (१) या । यत्+जस् । यत्+शि। य अ+इ। य+0 । य नुम्+01 यन्+01 यान् +0 | या० । या ।
यहां 'यत्' शब्द से 'स्वौजस् ० ' ( ४ 1१1२ ) से 'जस्' प्रत्यय, उसके स्थान में 'जश्शसो: शि' (७।१।२० ) से 'शि' आदेश और 'त्यदादीनाम:' ( ७ । २ । १०२ ) से यत्' को अकार आदेश होता है । इस सूत्र से छन्द में 'शि' प्रत्यय का लोप होता है। 'प्रत्ययलोपे प्रत्ययलक्षणम्' (१1१1६१ ) से प्रत्यय का लोप होने पर प्रत्ययलक्षण कार्य की चिकीर्षा में 'नपुंसकस्य झलच: ' (७।१।७२) से 'नुम्' आगम, 'सर्वनामस्थाने चासम्बुद्धौ ( ६ 1१1८) से नकारान्त अंग की उपधा को दीर्घ और 'नलोपः प्रातिपदिकान्तस्य ' (८/२/७ ) से नकार का लोप होता है। ऐसे ही 'क्षेत्र' शब्द से क्षेत्रा और 'वन' शब्द से- वना ।
(२) यानि । यहां 'यत्' शब्द से पूर्ववत् 'शि' प्रत्यय और बहुल- पक्ष में उसका लोप नहीं है। शेष कार्य पूर्ववत् है । ऐसे ही 'क्षेत्र' शब्द से क्षेत्राणि और 'वन' शब्द से- वनानि ।
।। इति आदेशप्रकरणम् । ।