Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम्
संहिता (सन्धि) प्रकरणम् अधिकार:
(१) संहितायाम् ।७२। वि०-संहितायाम् ७।१।
अर्थ:-'संहितायाम्' इत्यधिकारोऽयम्, 'अनुदात्तं पदमेकवर्जम्' (६।१।१५८) इति यावत् । इतोऽग्रे यद् वक्ष्यति 'संहितायाम्' इत्येवं तद् वेदितव्यम् । वक्ष्यति-'इको यणचि' (६।१।७७) इति-दध्यत्र, मध्वत्र ।
आर्यभाषा अर्थ- (संहितायाम्) संहितायाम्' इसका ‘अनुदात्तं पदमेकवर्जम्' (६।१ ।१५८) इस सूत्र तक अधिकार है। इससे आगे जो कहेंगे उसे (संहितायाम्) सन्धि विषय में समझें। पाणिनि मुनि कहेंगे-'इको यणचि' (६।१।७७) अर्थात् संहिता विषय में अच् वर्ण परे होने पर इक के स्थान में यण आदेश ओता है। जैसे-दध्यत्र । दधि-दही यहां है। मध्वत्र । मधु-शहद यहां है। तुक्-आगमः
(२) छे च।७३। प०वि०-छे ७।१ च अव्ययपदम्। अनु०-हस्व, तुक्, संहितायाम् इति चानुवर्तते। अन्वय:-संहितायां छे ह्रस्वस्य तुक् । अर्थ:-संहितायां विषये छकारे परतो ह्रस्वस्य तुक्-आगमो भवति । उदा०-स इच्छति । स गच्छति ।
आर्यभाषा: अर्थ-(संहितायाम्) सन्धि विषय में (छे) छकार वर्ण परे होने पर (ह्रस्वस्य) ह्रस्व वर्ण को (तुक्) तुक् आगम होता है।
उदा०-स इच्छति। वह चाहता है। स गच्छति । वह जाता है।
सिद्धि-इच्छति । इण्+लट् । इण्+तिम् । इण्+शप्+ति। इछ+अ+ति। इतुक्+छ+अ+ति । इत्छ+अ+ति। इच्छ+अ+ति। इच्छति।
यहां 'इषु इच्छायाम्' (भ्वा०प०) धातु से लट् प्रत्यय, 'तिप्तस्झि०' (३।४।७८) से लकार के स्थान में तिप्' आदेश और कर्तरि शप' (३।१।६८) से शप् विकरण-प्रत्यय है। इषुगमियमां छ:' (७।३ १७७) से 'इष्' के षकार को छकार आदेश होता है उस छकार वर्ण के परे होने पर इछ' के ह्रस्व वर्ण इकार को इस सूत्र से तुक' आगम होता है। स्तो: श्चुना श्चुः' (८।४।३९) से तकार को चुत्व चकार होता है। ऐसे ही 'गम्लु गतौ' (भ्वा०प०) धातु से-गच्छति।