Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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षष्ठाध्यायस्य प्रथमः पादः यहां अप-उपसर्गपूर्वक छो छेदने (दि०प०) धातु से 'धातोरेकाचो हलादे: क्रियासमभिहारे यङ्' (३।१।२२) से यङ् प्रत्यय, 'आदेच उपदेशेऽशिति' (६।१।४४) से छो' को आकार आदेश होकर सन्यडो:' (६।१।९) से उसे द्वित्व होता है। 'अभ्यासे चर्च (८।४१५३) से अभ्यास के छकार को चकार आदेश होता है। दीर्घ 'चा' से उत्तर छकार परे होने पर इस सूत्र से उस दीर्घ 'चा' को तुक्' आगम होता है और उसे 'स्तो: श्चुना श्चुः' (८।४।३९) से चुत्व चकार होता है। यडन्त 'अपच्छाय' धातु से लट्' प्रत्यय है। ऐसे ही-विचाच्छायते ।
तुक्-आगमः
(५) पदान्ताद् वा ७६। प०वि०-पदान्तात् ५।१ वा अव्ययपदम्। अनु०-तुक्, संहितायाम्, छे, दीर्घाद् इति चानुवर्तते। अन्वय:-संहितायां पदान्ताद् दीर्घाच्छे वा तुक् ।
अर्थ:-संहितायां विषये पदान्ताद् दीर्घवर्णाच्छकारे परतस्तस्य दीर्घस्य विकल्पेन तुक् आगमो भवति ।
उदा०-कुटीच्छाया, कुटीछाया। कुवलीच्छाया, कुवलीछाया ।
आर्यभाषा: अर्थ- (संहितायाम्) सन्धि-विषय में (पदान्तात्) पदान्त (दीर्घात्) दीर्घ वर्ण से उत्तर (छे) छकार परे होने पर उस दीर्घ वर्ण को (वा) विकल्प से (तुक्) तुक् आगम होता है।
उदा०-कुटीच्छाया, कुटीछाया। कुटी झोंपड़ी की छाया। कुवलीच्छाया, कुवलीछाया। कुई (मोतिया) नामक लता की छाया।
सिद्धि-(१) कुटीच्छाया । कुटी+डस्+छाया। कुटी+तुक्+छाया। कुटीत्+छाया। कुटीच्+छाया। कुटीछाया।
यहां कुटी और छाया शब्दों का षष्ठी' (२।२।८) से षष्ठीतत्पुरुष समास है। अन्तर्वर्तिनी 'ङस्' विभक्ति को मानकर सुप्तिङन्तपदम्' (१।४।१४) से 'कुटी' शब्द की पद-संज्ञा है। कुटी' पद के अन्त में विद्यमान दीर्घ वर्ण ईकार को इस सूत्र से तुक् आगम होता है। और 'स्तो: श्चुना श्चुः' (८।४।३९) से उस तकार को चुत्व चकार होता है। ऐसे ही-कुवलीच्छाया।
(२) कुटीछाया। यहां कुटी' शब्द के पदान्त दीर्घ वर्ण ईकार को विकल्प पक्ष में इस सूत्र से तुक् आगम नहीं है। ऐसे ही-कुवलीछाया।