Book Title: Jain Shasan 1992 1993 Book 05 Ank 01 to 48
Author(s): Premchand Meghji Gudhka, Hemendrakumar Mansukhlal Shah, Sureshchandra Kirchand Sheth, Panachand Pada
Publisher: Mahavir Shasan Prkashan Mandir
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स्मृति काव्यम् ।
- मुनि श्री प्रशमरतिविजयाः ।
य मृत्यु- मोहदलनी परमां गिर स्म या जीवितव्यसुषमां सुभगां तनोति ॥ माता गुरुर्भगवती शिवधाम्नि सेता नूनं विदार्य हृदयं विदयं मदीयम् ||१|| करूण्यपुण्य हृदयः भगवन् ! स्वमासी: T पापं हरत्यनुदिनं स्म शुभा तवाशी पापानि तावदनिशं वहरन्ति पुण्यं
हा ! मामकीनमथ यास्मि भवान् सुद्रम् ॥ २ ॥ अचार्यवर्य गगनायक ! विश्ववंद्य ! स्वन्नाम संस्मरणमेव ममास्ति पुण्यम् । तीव्र निदाघतपने सति चातवस्त्र धाराधरस्मृति रहो ! ननु रहन्ति तर्षम् ॥३॥ आत्मोद्भवा हृदय कान्त लय सुरम्या गङ्गेव शैत्यजननी भवती त्वदीया । वाणी सदैव मधुरा विधुराऽघवृन्दैः नलिङ्कृताऽवि सरसा स्मृतिमेति नूनम् ।।४।। दग्ध दहत्य खिलविश्वमयं दिनेश: संक्षीयमाण विभव : राशमात्र रम्यः ॥
न होने से संगठन में फूट का साम्राज्य फैलाया और पीठ मे छूरा भोंक खुले तौर विरुध हो । सं. २०४२ के पट्टक मे हस्ताक्षर किये व अप्रत्यक्षरूप से सं. २०४४ के श्रमण संघ सम्मेलन के घडवैया बनकर बडिलो की परम्परा पर हडताल फेर दी । इसी का नाम एकता था । नामी
पू. स्वर्गस्थ आत्मा तो पूण्यानूबंधी पूण्य के धणी थे । बिगड़ती बाजी सूधार स्वर्ग पधार गयें ।
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मेरी अन्तरात्मा तो यही कहती हैं कि इन महापुरुषनै महाविदेह क्षेत्र मे कहीं जन्म लेकर पलना मे झूल रहे होंगे । उन्हे कोटि कोटि वंदना ।