Book Title: Jain Shasan 1992 1993 Book 05 Ank 01 to 48
Author(s): Premchand Meghji Gudhka, Hemendrakumar Mansukhlal Shah, Sureshchandra Kirchand Sheth, Panachand Pada
Publisher: Mahavir Shasan Prkashan Mandir
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इस पंचम काल के विश्वगगन मण्डल में सूर्य व चन्द्रमा के समान सर्व धर्म में अपनी अपनी मान्यता के अनुसार कई महापुरुष पैदा हुवें व आयुष्य पूर्ण कर इस असार संसार को छोड कर चले गये । इन में जैन शासन के दीक्षा के दानेश्वरी विशालगच्छाधिपति विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी म. सा. के नाम का भी
समवेश होता है। १ इन महापुरुष का जन्म सं. १९५२ का था-आयूष्य की - पूणाहूति संवत् ६ २०४७ श्रा. कृ. १४ की थी। येंगर्भावस्था के तिन महिने से ही तिथि चर्चा से बंधे हुवे थे-(यानि उस समय पू. सागरानन्दजी म. सा. ने श्रमण संघ से जूदी भा. शु. ३ को संवत्सरि को थी) व अन्तिम समय तक बंधे हुवे रह कर आयूष्य पूर्ण किया । सं. २०४७ श्रा. कृ. १४ से लगाकर अब तक कोई भी दैनिक-साप्ताहिक तथा मासिक पत्र ऐसा नहि है जिसने इन महापुरुष के जीवन पर प्रकाश न डाला हो । अतः मै भी कुछ हार्दिक उदगार प्रगट करने 8 का साहस कर रहा हूँ ।
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-- सच्चा समर्पण -
___ --चतरसिंह नहार.-उदयपुर eeeeeeeeeeeeee&&&&&&ee)
सब पू. गुरु भगवन्त शास्त्र के ज्ञाता है. हम श्रावक श्राविकाओं को रागद्वेष व इर्षा-माया नहि करने का उपदेश दे उदाहरण के तोर पीठ5 महापीठ व मल्लीनाथ भगवान का चरित्र सूनाते हूँ जब ये ही गुरुदेव इन 8 तिनो पापो के सेवन करते हैं ओर कोई पुछ लेता है तो स्याद्वाद का दण्डा
बताते है । 8 पू. स्वर्गस्थ आत्मा तो वडिलों के प्रति इतने समर्पण भाव वाले व विनय
वन्त थे कि कहीं स्वप्न में भी उनका अविनय न हो जावे कालजी रखते थे. उदाहरण के तोर तिथि चर्चा के सम्बन्ध मे राधनपुर से पत्र व्यवहार था. जिनकी नकलो का आदान प्रदान अमनेर से था ।
आज दुःख के साथ स्पष्ट लिखना पड रहा है कि इस इर्षा डाकिन ने-8 सं. २००० दानसूरि ज्ञान मन्दिर प्रतिष्ठा के समय से ही धतूरे के बीज बोयेगुरु शिष्य मे वैमनश्य · बढाया २०२० का अपवादिक पट्टक बनवाया और न 8 जाने अपने तच्छ स्वार्थ (बदलोलुप्ता) के कारण क्या प्रपंच रचे! उस पर भी शान्ति ।