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की सुलभता एवं सुगमता सहज रूप में प्राप्त हो जायेगी। इसी कारण भगवान् ऋषभदेव जी की मूर्ति को प्रतिष्ठित करने के लिए रेलवे स्टेशन के निकट रायगंज क्षेत्र में रानी का विशाल बाग़ मन्दिर जी के लिए प्राप्त किया गया। इस विस्तृत भूभाग के मध्य में नयनाभिराम मन्दिर बनवाया गया। श्री मन्दिर जी के गौरव के अनुरूप मुख्य द्वारों का निर्माण कराया गया। मुख्य द्वार के दोनों ओर तीर्थयात्रियों एवं त्यागियों की सुविधा के लिए विशेष कक्ष बनवाये गए थी मन्दिर जी को आकर्षक एवं भव्य रूप देने के लिए अन्य अनेक उपयोगी योजनाओं को वहाँ क्रियान्वित कराया गया ।
श्री मन्दिर जी के निर्माण कार्य की प्रगति से सन्तुष्ट होकर आचार्यश्री ने बिम्ब प्रतिष्ठा के लिए १ मई से १४ मई १९६४ की तिथि निश्चित कर दी। पंचकल्याणक महोत्सव में सम्मिलित होने के लिए आचार्यश्री स्वयं भी संघ सहित अयोध्या पहुंच गए । इस चिरप्रतीक्षित पंचकल्याणक महोत्सव में श्रमण एवं वैदिक परम्परा को एक मंच पर प्रस्तुत करने की भावना से राष्ट्रसन्त श्री देशभूषण जी महाराज ने अयोध्या स्थित रामभक्त सन्तों एवं महन्तों से सम्पर्क स्थापित किया । आचार्यश्री के सरल एवं आकर्षक व्यक्तित्व के कारण वैष्णव समाज के साधुओं एवं महन्तों ने प्रतिष्ठा कार्य में विशेष सहयोग प्रदान किया। प्रतिष्ठा के अवसर पर समस्त अयोध्यावासियों, तीर्थयात्रियों एवं निकटवर्ती क्षेत्र के धर्मप्रेमियों को भोज के लिए आमन्त्रित किया गया। आचार्यश्री के आदेश पर इस नगरभोज के लिए विशेष तैयारियां की गईं। बड़े-बड़े कुएँ खुदवाकर उनकी तलहटी में पत्तलें बिछाकर भोजन सामग्री एवं मिष्टान्न रखे गए । जैन-अजैन बन्धुओं से निर्मित प्रबन्ध व्यवस्था समिति ने सभी आगन्तुकों का हृदय से स्वागत किया । उस समय ऐसा प्रतीत होने लगा कि अयोध्या का प्राचीन वैभव एक बार फिर अंगड़ाई लेकर खड़ा हो रहा है। पंचकल्याणकों की कड़ी में शास्त्रीय नियमों के अनुसार श्री भगवान को आहार दान के निमित्त जाना था। उस दृश्यांकन के लिए आचार्यश्री चर्या के लिए निकले। उन्होंने आहार ग्रहण करने की विधि के अनुसार बायें हाथ को कंधे पर रखकर चलना आरम्भ किया ही था कि कुछ दूरी पर महोत्सव में सम्मिलित होने के लिए आए गजयुगल ने हर्षातिरेक से चिंघाड़ते हुए सूंड उठाकर महाराज श्री को प्रणाम किया और उनके निकट आए। उसी समय एक व्यक्ति लड्डू से भरी परात लेकर आचार्य महाराज का पूजन करने के लिए आया । आचार्यश्री के संकेत से उस व्यक्ति ने लड्डू की परात गज के सम्मुख कर दी। दोनों हाथियों ने प्रीतिपूर्वक मोदक सेवन किया। पंचकल्याणक महोत्सव के सफल समापन समारोह के अवसर पर आचार्यश्री ने मन्दिर के निर्माण कार्य में लगे हुए श्रमिकों को भी विशेष पुरस्कार, वस्त्र एवं मिष्टान्न से भरी हुई थालिय
युगल
दिलवाई।
श्री मन्दिर जी की योजना को साकार रूप देते समय ऐसा प्रतीत होता था कि आचार्यश्री का इस मन्दिर से विशेष मोह हो गया है । किन्तु पंचकल्याणक महोत्सव के समाप्त हो जाने के उपरान्त वहाँ की प्रबन्ध व्यवस्था के संबंध में आचार्यश्री को कोई मोह नहीं रहा । सम्भवतया आचार्यश्री का १६६५ के उपरान्त शायद ही अयोध्या जाना हुआ हो । वास्तव में आचार्यश्री इस प्रकार के विशाल मन्दिर एवं मूर्तियाँ श्रावकों के कल्याण एवं धर्म के प्रचार-प्रसार के निमित्त निर्मित कराते हैं। इस प्रकार की धर्मप्रभावनाओं में सम्मिलित होकर आचार्यश्री को केवल एक लाभ होता है-वह है तीर्थंकर भगवान् की इसी लाभ के लिए उन्होंने दिगम्बर स्वरूप को ग्रहण किया है। किन्तु विचार करके के लाभ के लिए हैं। उनके जैसे समर्थ सन्तों के कृतित्व से संस्कृति का निर्माण होता है। संख्या में हिन्दू समाज एवं अन्य पर्यटक आते हैं । इस महान् मन्दिर से वे जैन धर्म के सार तत्त्व एवं दर्शन को अपने साथ ले जाते हैं । इस वैचारिक आदान-प्रदान से आने वाले कल में कितने स्वर्णकमल खिलेंगे, इसका आकलन आज सम्भव नहीं है । किन्तु इन स्वर्णकमलों की सुगन्धि में आचार्यश्री के कालजयी व्यक्तित्व के सौरभ का संस्पर्श पाकर कौन प्रफुल्लित न होगा ?
अनुभूतियों से तादात्म्य स्थापित हो जाना । देखा जाए तो इस प्रकार के आयोजन मानव जाति अयोध्या स्थित दिगम्बर जैन मन्दिर में आज बड़ी
(आ) कोथली का रचना - शिल्प
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बेलगांव के श्रावक आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी को अपना आदर्श एवं गौरवपुरुष मानते हैं और आपकी धर्म-प्रभावना के लिए लालायित रहते हैं। इसी पावन भावना से प्रेरित होकर निपाणी के जैन समाज ने सन् १९६७ में आचार्यरत्न जी से यह अनुरोध किया कि वे संघसहित निपाणी स्थित भगवान् श्री नेमिनाथ जी के मन्दिर के दर्शनार्थ पधारने की कृपा करें इसी अवसर पर कोयली ग्राम के निवासियों ने आचार्यरन श्री देशभूषण जी से कोबली ग्राम में पधारने की विनम्र प्रार्थना की। आचार्यरन श्री देशभूषण जी अपनी जन्मभूमि में जाने से संकोच करते थे। अतः उन्होंने कोयली निवासियों की प्रार्थना को अस्वीकार कर दिया। कोसी निवासियों ने आचार्यची के चरणों में अपनी प्रार्थना पुनः निवेदित की आचार्यची के संकोच को लक्षित करके उन्होंने उनसे अनुरोध किया"आपने धर्म की दंगा को सर्वसुलभ कराया है। जैन धर्म के एक बयोवृद्ध महान आचार्य के नाते अब संसार का कोई भी प्रलोभन आपको
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आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ
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