________________
अनगार
धर्म
२५
मङ्गल, निमित्त, हेतु, प्रमाण, नाम, और शास्त्रका, इन छह बातोंको पहले दिखाकर पीछे आचार्य ग्रंथकी रचना करते हैं । अत एव इन छह बातोंको ही पहले यहांपर दिखाते हैं। ..मंगल-जो म-मल- पापको गलादे अथवा मङ्ग-पुण्यको दें उसको मङ्गल कहते हैं । यह, प्रारब्ध : कार्य निर्विघ्नतया सिद्ध होनेकेलिये किया जाता है । मंगल दो प्रकारका होता है; १ मुख्य, २ गोण.। मुख्यमंगल भी दो. तरहका होता है। एक अर्थकी अपेक्षा, दूसरा शब्दकी अपेक्षा । जिसमें से अर्थकी अपेक्षा मुख्य मंगल भगवान् सिद्धपरमेष्ठी आदिके गुणोंकी स्मृति और स्तुति रूपसे पहले ही किया जाचुका है। एवं शब्दकी अपेक्षा भी मुख्य मंगल इसी श्लोककी आदिमें अथशब्दका उच्चारण करके करलिया गया है। क्योंकि अंथशब्द भी मंगलवाचक है । जैसा कि कहा भी है:- .. .
त्रैलोक्येशनमस्कारलक्षणं मङ्गलं मतम् ।
विशिष्टभूतशब्दानां शास्त्रादावथवा स्मृतिः ॥ इति । । शास्त्रकी आदिमें तीन लोकके स्वामी सवई वीतराग भगवान्को नमस्कार करना मंगल माना गया है, अथवा खास खास शब्दोंके स्मरण या उच्चारणको भी मंगल कहते हैं।
संपूर्ण कलश दधि अक्षत और सफेद फूल इत्यादिके उपहारको गौण मंगल कहते हैं। क्योंकि वह मुख्य मंगलकी प्राप्तिका उपाय है । सो भी शास्त्रकी आदिमें ग्रंथकारने करलिया है; जैसा कि ग्रंथकी निर्विघ्नतया सिद्धि के देखनेसे मालुम होता है।
निमित्त-जिसके उद्देशसे शास्त्रकी रचना होती है उसको निमित्त कहते हैं । सो यह भी 'भव्याः' इस शब्दसे बतादिया गया है। अर्थात् भव्योंके उद्देशसे ही इस शास्त्रकी रचना की गई है, और किसी दूसरे उद्देशसे नहीं।
अन० घ०४
अध्याय