Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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विषय २६ शिशिर ऋतुमें पवनके चलने पर कितनेक अनगार कांपते
थे, कितनेक अनगार उस हिमवातसे बचने के लिये निर्वात
स्थानकी खोज करते थे। २७ चौदहवीं गाथाका अवतरण, गाथा और छाया। २८ उस हिमऋतुमें कितनेक अनगार शीतनिवारणके लिये
संघाटी ओढते थे। परतीर्थिक तापसादि धूनी जला कर शीतवारण करते थे और गृहस्थ लोग विविध प्रकारके वस्त्र धारण करते थे।
५७४ २९ पन्द्रहवीं गाथाका अवतरण, गाथा और छाया । ५७४-५७५ ३० भगवान् महावीरने उस शिशिर ऋतुके हिमवातमें भी अनावृत
स्थानमें ही रह कर हिमस्पर्शको समभावसे सहते थे। ३१ सोलहवीं गाथाका अवतरण, गाथा और छाया।
५७६ ३२ भगवान् महावीरने इस प्रकारके दुःसह शीतोंको अनेकबार
सहा । भगवान्का उद्देश इसमें यह था कि दूसरे साधु भी इसी प्रकार शीतका सहन करें । उद्देश समाप्ति । ५७६-५७७
॥इति द्वितीय उद्देश संपूर्ण
५७५
॥ अथ तृतीय उद्देश ॥ १ तृतीय उद्देशका द्वितीय उद्देशके साथ सम्बन्धकथन, प्रथम गाथाको अवतरण, गाथा और छाया ।
५७८ २ भगवान् सर्वदा सभी प्रकार के स्पर्शों को सहते थे। ५७८-५७९ ३ द्वितीय गाथाका अवतरण, गाथा और छाया।
५७९ ४ भगवान्ने दुश्चर लाढ देशकी वज्रभूमि और शुभ्रभूमिमें
विहार किया । वहां अन्तमान्त शय्या आदिका उन्होंने सेवन किया।
५७९-५८०
श्री. आयासूत्र : 3