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विवाह
कि ऐसा करना हमारे लिए एक बड़ा भारी कलङ्क है, कारण पिताजी ने हमें जन्म देकर बड़ा किया, पढ़ाया, और विवाह कर दिया, अब पितामी की सम्पत्ति पर मेरा कुछ भी अधिकार नहीं है । हां, यदि हम सुपुत्र हैं तो उनकी तन, मन तथा धन से सेवा बंदगी करें, इत्यादि वचन सुन कर वे लोग लज्जित हो गये, जब इन शब्दों को हमारे मूताजी ने सुना तो आप बड़े ही संतुष्ट हुए ।
हमारे चरित्रनायकजी की व्यापार हटोती वैसे ही सुन्दर थी तथा आप थे भी हिम्मत बहादुर, अतएव अलग होते ही तो आपने किसी के शामिल में व्यापार किया, पर बाद में जब
आपके पास थोड़ी बहुत रकम हो गई तो स्वतंत्र अर्थात् अपना निजू व्यापार चलाया जो बड़े २ व्यापारियों की स्पी करने से आगे बढ़ गये । आपका खर्चा जैसा का तैसा ही था, जब १९५४ और ५५ में आपके व्यापार में काफी मुनाफा रहा, तो खर्च काटकर बची हुई रकम भी व्यापार में लगादी। जब १९५६ में एक जबरदस्त एवं-सर्व-प्राण हरण दुष्काल पड़ा उस समय सरकार की ओर से 'धोलेराव' में विशाल तालाब के बांध का काम जाहिर हुआ। गयवरचन्दजी ने अपने कई साथियों के साथ अनाज की एक बड़ी दुकान खोलदी जिससे उसमें आपको अच्छी सफलता मिली । खर्च निकाल कर बची रकम से कुछ जेवर आभूषण भी करा लिये। वि० सं० १९५७ की सालभी आपके लिए बहुत ही श्रेष्ठ रही । इस वर्ष आपको व्यापार में अच्छा मुनाफा हुआ, आप जैसे धनोपार्जन करने में पुरुषार्थी थे वैसे खर्च भी विशेष रखते थे और उस खर्च की वजह से आपका नाम भी चारों और फैल गया था।