Book Title: Aadarsh Gyan
Author(s): Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala

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Page 648
________________ ५५७ पात्रीताणा में व्याख्यान मुनि०-यह तो मेरे से रहा नहीं मावेगा अतः मुझे एक कोठरी मिल जावेगी तो मैं तो उसमें ही मेरा निर्वाह कर लूंगा, पर ऐसे शिथिलाचारियों के शामिल रहना तो मुझे पसंद नहीं है । तीनों मुनिराज नगर देरासर के दर्शन कर मोती मुखिया की धर्मशाला में गए, और वहाँ अलग कोठरी की याचना की तो मुनीम ने कहा कि यहाँ कोठरी खाली नहीं है, अतः दूसरी धर्मशाला में गये वहां भी कहा कि यहाँ कोठरी खाली नहीं है। तीसरी धर्मशाला में गये तो पूछा कि आपके साथ क्या कोई गृहस्थ हैं ! म. तलब यह था कि वहां धर्मशाला के सब मुनीम भज कल्दारम् के जाप जप रहे हैं । यदि साथ में श्रावक हो तो उनके पास से पैसा लेकर कोठरी दे दे। अतएव जहां गए वहां ही मुनीम लोग अपनी दुकानदारी लेकर बैठे हुए पाये । मुनिश्री ने आम सड़क पर अपना भंडोपकरण रख अपना भाषण देना शुरू कर दिया; पहले तो श्रा. पने तीर्थ महात्म्य और यात्रार्थ आने का कारण बतलाया। आप. की आवाज बहुत बुलन्द थी कि जिसको सुनकर बहुत से लोग एकत्रित हो गए, जब अधिक संख्या में लोग जमा हो गये तब आपने फरमाया कि भाइयो ! मैं सिद्धगिरि की यात्रा करने तो आया ही हूँ, पर मेरा खास ध्येय तो यहां पर मारवाड़ियों की अलग पेटी खोलने का ही है. कारण हम दूर बैठे सुनते थे कि पालीताणा की पेटी में ।-) गुर्जरों की और ॥2) मार. वाड़ियों की आमदनी होने पर भी मारवाड़ी लोग सिर पर पोट लिये उठाये हुए जगह के लिये मारे मारे भटकते फिरते हैं; फिर भी धर्मशाला के मुनीम उनको कुत्तों की भांति दुतकार कर धर्मशालाओं से निकाल देते हैं, अतः बिचारे मारवाड़ियों को इस

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