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सागरजी के क्षमापना
हो सका है अतः जघड़ीये जाकर समवायांगजी सत्र तथा इसका शुद्धि पत्र भी भेज देंगे। ___ सागरजी के भक्त ने पन्नवणा सूत्र और उसका शुद्धि पत्र सागरजी को दिया तब जाकर सागरजी की आँखें खुली कि मुनिजी को शास्त्रों का वोध तो बहुत अच्छा है। मुनिजी का विहार करना अच्छा ही रहा वरना उनके प्रश्नों के लिए बड़ी भारी पंचायत पड़ जाती।
मुनिश्री के पूछे हुए प्रश्न आज पर्यन्त सागरजी के सिर पर ऋणस्वरूप अमर यानि जीवित हैं। जिन प्रश्नों को आप पिच्छले पृष्ठों में पढ़ आये हैं। ६० वि० सं० १९७६ का चतुर्मासा जघड़िया में। ___योगीराज व मुनिजी कतारग्राम से विहार कर अनुक्रमे ज. घड़िया तीर्थ की यात्रा की, वहाँ की आब हवा अच्छी थी, मकान निर्वृत्ति का था । यागीराज की इच्छा जघड़िया में चतुर्मास करने की हो गई, ठीक है निर्वृत्ति चाहने वाले योगियों के लिए ऐसा हो स्थान योग्य होता है । पर वहाँ श्रावकों के केवल तीन ही घर थे।
इधर दो साधु जघड़िये और भी आ गये; जिसमें एक थे उ० सोहनविजयजी के शिष्य मित्रविजयजी, दूसरे थे मुनिश्री हंसविजयजी महाराज के प्रशिष्य बसन्तविजयजी, जब वे योगीराजजी से मिले और अपनी इच्छा ज्ञान पढ़ने की प्रदर्शित की। इस पर योगीराज ने कहा तुम हमारे साथ रह कर खुशी से ज्ञानाभ्यास कर सकते हो, बस मुनियों का मनोरथ सफल हो गया।