Book Title: Aadarsh Gyan
Author(s): Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala

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Page 699
________________ आदर्श-ज्ञान- द्वितीय खण्ड ६०४ साथ सेठ हटीसिंह की वाड़ी में विराजते थे। जब सूरिजी ने सुना कि ज्ञानसुन्दरजी अहमदाबाद आते हैं तो रूपविजय को कहा, कि तुम्हारे गुरुजी आते हैं उनके लिए मकान साफ कर तैयार रखना और उनके श्राने पर तुम सेवा करना, कारण तुम्हारे पर उनका उपकार है । रूपविजय ने कहा, कि हांजरूर मेरे पर उपकार और मैं बन सकेगा अवश्य सेवा करूंगा । क्रमशः विहार करते हुए मुनिश्री अहमदाबाद पधारे। श्रावकों को आपके पधारने का समय मालूम न होने से वे निश्चिन्त थे, किन्तु जब खबर मिली तो इक्का, मोटरों द्वारा वाड़ी में आ पहुँचे मुनिश्री मन्दिरजी के दर्शन कर आये तो बाहर रूपविजयजी खड़े थे, उनको देख पूछा कि क्या सूरिजी महाराज यहीं विराजते हैं ? रूप हाँ बस, सीधे ही सूरिजी महाराज के पास जाकर वन्दन की सूरिजी ने इतना प्रेम दर्शाया कि मानो एक अपने मित्र का ही मिलाप हुआ हो बाद में पहिले से ही साफ किया हुआ मकान में आप ठहर गये, गोचरी पानी लाये आहार कर लिया, बाद श्रावक लोग आ गये और चातुर्मास के लिए विनती करने लगे । मुनिश्री ने गुरु महाराज का आज्ञा पत्र दिखाया तथा कहा कि मुझे जल्दी से मारवाड़ जाना है । फिर वे श्रावक कह ही क्या सकते ? कारण इतने बड़े कार्य के लिए गुरु सेवा छोड़ कर आये वे बीच में कैसे रुक सकें ? दूसरे दिन शहर के मन्दिरों के दर्शन किए और विहार के लिए तैयार हुए पर सूरिजी महाराज ने कहा कि दो दिन तो और ठहरें, अभी तो तुमने हमारा उपासरा भी नहीं देखा है, अतः सूरिजी के कहने से दो दिन और ठहरना स्वीकार कर लिया। तत्प

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