________________
६२५
खरतरों को खेंचा-तानी
मैं-ठीक है। बाद में पहिले बड़ोदरे सोनश्रीजी के पास गया और सब बातचीत की, उन्होंने मुझे खरतर गच्छ की क्रिया के लिए बहुत जोर दिया. पर जब द्रव्य-सहायता के लिए कहा तो उन्होंने कोरा जबाब दिया कि इस समय तो यहाँ कुछ नहीं है, अभी तो तुम काम चलाओ, फिर समय पाकर मैं कहाँ से ही द्रव्य की सहायता पहुँचाती रहूँगी, पर याद रखना भोसियां के बोर्डिंग में सब विद्यार्थियों को क्रिया खरतर गच्छ की ही पढ़ाते रहना । खैर, मैं वहाँ से कृपा. चन्द्रसूरि के पास गया। वहां भी गच्छ राग तो उतना ही था पर द्रव्य-सहायता के लिए कोरा जबाब मिला जैसा सोनश्रीजी से मिला था। __ मैंने सूरिजी से कहा कि आप क्रिया के लिए तो इतना आग्रह करते हो पर द्रव्य सहायता के लिये कुछ भी नहीं, फिर हम क्रिया कैसे करा सकते हैं इस बात को आप स्वयं विचार कर लीरावें और मैं खर्चा लगाकर आयाहूँ कुछ सहायता तो करवानी चाहिए।
जब खरतरों पे द्रव्य-सहायता की मुझे बिलकुल ही उम्मेद नहीं रही तब इस हालत में मैं जो शुरू से क्रिया चलती थी वह सी सिलसिला रखा। इस पर खरतर गच्छ वाजों का बोर्डिग प्रति ऐसा प्रकोप हुआ कि अब वे इस बोर्डिंग को जड़ा मूल से नष्ट कर देना चाहते हैं । इस कार्य में मुख्य कारण तो ज्ञानश्री, बल्लभश्री ही हैं। उन्होंने ने मचन्दजी को बहका दिया है और नेमिचंदजा साध्वियों के डाया हाथा का कठपुतला बना हुआ है। यहां का जैसा हाल है वैसा मैंने आपकी सेवा में निवेदन कर दिया। अब आप जैसा उचित समझ वैसा करावें; पर अब बोडिङ्ग को चलाना हो