Book Title: Aadarsh Gyan
Author(s): Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala

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Page 729
________________ आदर्श-ज्ञान- द्वितीय खण्ड ६३२ मुनिश्री ने कहा कि अभी तो मैं कुछ दिन यहां ठहरूंगा, तथा बोर्डिङ्ग के विद्यार्थियों को बुलाने का प्रयत्न करूंगा, यह भी आप का ही काम है; बाद क्षेत्र स्पर्शन होगा सो काम आवेगा । मैंने सुना हैं कि आपके वहां मुनिश्री वल्लभविजयजी महाराज का चतुर्मास होने वाला है ? हां, विनती तो की है । बीकानेर वालों ने मुनीम को कह दिया कि तुम विद्यार्थियों को बढ़ाओ, तथा खर्चे के लिए एकेक मास का बिल भेजते जाओ और रकम आवश्यकतानुसार मंगाते जाओ; मुनिश्री हुक्म दें उसी माफिक कार्य करते जाओ और सब समाचार लिखते रहना । बोर्डिङ्ग के बारे में खरतरों के हाथ से बाजी चली गई; साध्वियों ने इस बात को सुनी तो उन्होंने कहा कि यह बात तो हम लोग पहले से ही जानती थी कि ज्ञानसुन्दरजी महाराज इतने दूरदेश से चला कर आये हैं तो आप कुछ न कुछ नया जूना अर्थात् अपना अड़ंगा जमावेंगे ही और उन्होंने हमारा विचारों को सत्य कर बतला भी दिया। इतना ही क्यों पर आपने तो ओसियां बोर्डिंग की मत्ता भी खरतरों के हाथों से छीन ली है, न जाने भविष्य में फिर क्या करेगा । फलौदी वालों ने मुनिश्री से फलौदी पधारने के लिए आग्रह पूर्वक विनती की, कारण फलौदी के लोग सूत्र के बड़े ही प्रेमी थे, उनकी इच्छा थी कि मुनिश्री फलौदी पधार जावें तो हम पुनः सूत्र सुनने का लाभ उठाव; किन्तु मुनिश्री ने कहा कि अभी तो मैं ओसियां ठहरूँगा । रायपुर सी० पी० में उपकेशगच्छीय यति लाभसुन्दरजी रहते थे, उनके पास कुछ पुराने शास्त्रों का ज्ञान भण्डार था, वह

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