Book Title: Aadarsh Gyan
Author(s): Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala

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Page 730
________________ ओसियाँ में रत्नप्रभाकर ज्ञान भण्डार ज्ञान भण्डार ज्यों का त्यों मुनिश्री को भेज दिया, कुछ प्रतिएं यतिवर्य माण कसुन्दरजी ने राजलदेसर से भी मुनिजी का भेज दी, कुछ सूत्र आपके पास जो दढ़यों से आये तब साथ ले आये वे भी थे । कुछ पुस्तकों की आपको आवश्यकता थी वे श्रावकों को उपदेश दे कर मंगाई थीं। पुस्तकों का संग्रह इतना बढ़ गया कि एक खासा भंडार ही हो गया। आपश्री ने सोचा कि यह तो एक गृहस्थों के संग्रह वाला झमेला हो गया, और इसको संभालने में भी टाइम व्यतीत होती है अतः इस संग्रह का इस तीर्थ पर भंडार कर देना ही लाभ का कारण है, क्योंकि एक तो ममत्व हट जावे, दूसरे संभालने की झंझट मिट जावे । अतः फलोदी से मेघराजजी मुनोयत और लीछमोलालजी कोचर आ गये; उन्होंने परिश्रम कर सब पुस्तकों की फेहरिस्त एक रजिस्टर में बनाली, जिसमें विशेषता यह थी कि सब पुस्तकें मुनिश्री के उपदेश से आई, मुनिश्री के अधिकार की होने पर भी जिन २ सज्जनों ने आप को पुस्तकें भेट की रजिस्टर में 'उनकी तरफ से आई' लिखवा दी। यह आपकी कितनी बड़ी उदारता की बात है कि आपको अपना नाम बढ़ाने की तनिक भी परवाह नहीं थी। धन्य है ऐसे महास्माओं को। उस ज्ञान भण्डार का नाम श्री रत्नप्रभाकर ज्ञान भण्डार रखा गया था, उसके सुन्दर नियम प्रणाली तैयार कर व सब हकीकत लिख कर वह रजिस्टर गुरु महाराज के अवलोकनार्थ भेज दिया। गुरु महाराज ने किसी से प्रेस कापी करवा कर उसे ज्यों का त्यों छपा दिया। मुनीम चुन्नीला न भाई अभी तक अविवाहित हो थे और

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