Book Title: Aadarsh Gyan
Author(s): Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala

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Page 723
________________ भादर्श-ज्ञान-द्वितीय खण्ड ६२६ तो आप पक्के पाये पर काम करना, नहीं तो यह खरतर गच्छ वाले काम चलने नहीं देंगे। ___मुनि०-खैर, अब क्या करना है ? मुनीम-जैसी आपकी आज्ञा हो । कल मेला है, अतः सब जोग एकत्र होंगे ही। ___ मुनि-मुनीमजी! यह कार्य चलाना साधुओं का काम नहीं, अपितु श्रावकों का काम हैं; कारण साधु एक स्थान पर तो रह ही नहीं सकते हैं, साधु तो उपदेश दे सकते हैं। भला आपका पत्र आने पर परमदयालु गुरु महाराज ने मेरी इच्छा नहीं होते हुए भी मुझे भेज दिया, नहीं तो क्या दो-दो, तोन-तीन सौ कोस से साधुओं का आना-जाना बन सकता है । अब भी कोई अच्छा प्रेमी और परिश्रमी मनुष्य इस बोर्डिंग को सँभालेगा, तब ही यह चल सकेगा। मुनाम-हाँ साहिब आपका कहना सत्य है। मुनि:-ये पत्थर यहाँ क्यों डाले गये हैं ? मुनीम यहाँ कोठरियाँ बनाने का निश्चय हुआ है। मुनि०-यह जगह तो एक बड़ा हॉल ( कमरे ) के लिए रखी गई थी न ? मुनीम-हॉल बनाने में खर्चा बहुत होता है, इतना पैसा नहीं है; कोठरियाँ बनाने में तो एक २ कोठरी हर कोई बनवा देवेगा। मुनि०-मुनीमजी ! यह तीर्थं है, इसकी सहायता करने वाला श्री संघ है। पैसा पा जावेगा, मकान बिगाड़ो मत, यहाँ तो एक ही हॉल होने दो; यदि पैसा कम है तो मैं फलौदी जाकर

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