Book Title: Aadarsh Gyan
Author(s): Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala

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Page 721
________________ आदर्श-ज्ञान- द्वितीय खण्ड ६२४ मुनीम - गुरु महाराज की शुरु से आज्ञा थी कि जो जिस गच्छ का विद्यार्थी हो, उसको उसी गच्छ की क्रिया पढ़ाई जावे । किन्तु खरतरों ने इस बात का आग्रह किया कि ओसियाँ के बोर्डिंग में सबको खरतर गच्छ की ही क्रिया पढ़ानी चाहिये | इसो कारण से जोधपुर में साध्वी ज्ञानश्री, वल्लभश्री ने मुझे बुलाया और कानमलजी, सिवराजजी, फैजराजजी वगैरहः खरतर गच्छ के श्रावकों ने साध्वियों के पास आकर मुझको कहा कि कृपाचन्द सूरि और सोन श्रीजी के पत्र आये हैं कि ओसियाँ के बोडिंग में विद्यार्थियों को खरतर गच्छ की ही क्रिया कराई जावे, इसलिये तुमको कहना है कि आज से तुम वहाँ पर सब विद्यार्थियों को खरतर गच्छ की क्रिया पढ़ाया करो ! तब मैंने कहा कि पहिले कई विद्यार्थी तपागच्छ की क्रिया पढ़ चुके हैं, उनके लिए क्या करना ? साध्वियाँ - क्या करें ? उनको फिर से खरतर गच्छ को क्रिया पढ़ा दो और प्रतिक्रमणादिमें खरतर क्रिया कराया करो | मैं — ठीक, किन्तु ऐसा करने से यदि तपा गच्छ वाले सहायता देना बन्द कर देवेंगे तो आप सहायता करवा देओगे न ? साध्वियें - जागो कृपाचन्द्रसूरि और सोनश्रीजी के पास, वे अवश्य सहायता करवा देवेंगे । क्या खरतर गच्छ में धनाढ़यों की संख्या कम है ? मैं ठीक है, मैं सूरत और बड़ोदरे जाऊँगा, पर एक बात और भी है कि शायद तपा गच्छ वाले अपने लड़कों को नहीं रखेंगे तो १ साध्वियें - जितने हों उतनों को हो पढ़ाना ।

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