Book Title: Aadarsh Gyan
Author(s): Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala

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Page 716
________________ श्री कुम्भारियातीर्थ की यात्रा आँखों में जीव आ रहा; ऐसी विषम अटवी में कायर आदमी छाती फाट कर मर जाता है; तथापि-हमारे चरित्रनायकजी उस विपत्ति में धैर्य रख एक माड़ की छाया में लेट गये । जब १ बजी तो वहां से उठ कर रवाना हुए, भाग्यवश बहुत नजदीक ही रास्ता मिल गया; भूखे प्यासे करीब आध घंटा गत्रि व्यतन हुई तब जाकर आप कुंभारियाजो पहुँचे । किन्तु आपके दिल में चन्द्रविजयजी का बड़ा ही फिक्र था, लेकिन वे तो आपके पहिले ही कुंभरिया पहुँच गये थे । बस, दोनों महात्माओं ने भूखे प्यासे ही रात्रि व्यतीत की। - कुंभारिया में एक आनंदजी कल्याणजी की पेढ़ी है; जैनेत्तर मुनीम और दो नौकर भी रहते हैं। मुनीम ने मुनियों की अच्छी खातिर की; इतना ही क्यों पर उसने अफसोस प्रकट किया कि जैन मुनियों को इस प्रकार तकलीफ उठानी पड़ी। खैर, दूसरे दिन वहाँ की यात्रा की; कुंभारियाजी के मन्दिरों का निरीक्षण किया तो वहाँ आस पास में बहुत से जले हुए पत्थर देखे, इससे पाया जाता है कि अग्नि का उपद्रव अवश्य हुआ होगा। खैर, पांचों मन्दिरों के दर्शन किए; जिनमें एक नेमिनाथ स्वामि की भव्य मनोहर, वैराग्यमय शान्ति मूर्ति के दर्शन किए तो उस मूर्ति का इतना प्रभाव पड़ा कि मुनिश्री दो घंटे तक वहाँ से उठ नहीं सके, ऐसे ध्यान में तल्लीन हो गये थे। यहां से पास में ही दो मील के फासले पर जैनेत्तरों के एक अम्बाजी का मन्दिर है, जो पहले जमानों में यह भी एक जैन मन्दिर ही था, वहाँ भी बहुत से यात्री आया करते हैं अतः दूसरे दिन वहां भी जा आये। कुंभारिया से खराड़ी २४ मील है; वहाँ भी मार्ग में भीलों

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