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आदर्श - ज्ञान - द्वितीय खण्ड
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के सिवाय अन्य वस्ती के ग्राम नहीं; अतः कुँभारिया से खराड़ी २४ मील चलकर आये उस दिन भी करीब १ बज गई थी । उस समय सड़कें नहीं बनीं थी अतः रास्ता विषम था । उस दिन तो खराड़ी में ही रहे, दूसरे दिन वहां से विहार किया तो २४ मील चल कर चौकी पर ठहरे, और वहाँ से श्राबू देलवाड़े जाकर भगवान् - आदीश्वर एवंनेमिनाथ केदर्शनकर थकावट दर की। वहां का आनन्द तो भुक्त भोगी ही जानता है और आबू की शिल्प विश्वविख्यात भी हैं ।
यों तो मुनिश्री ३६ मील का विहार किये हुए थे, पर यहाँ एक तो पहाड़ों के रास्ते चलते २ पैरों से रक्त बहने लग जाता था, दूसरे २४ मील में कोई उच्च जाति का घर नहीं कि गौचरी, पानी या छाछ भी लेकर खावें पीवें; तीसरे एक दिन हो नहीं किन्तु निरन्तर ४ दिन तक पूर्वोक्त कष्ट के साथ २४ - २४ मील का विहार करना फिर भी पुरुषार्थो पुरुष क्या २ नहीं कर सकते हैं ? अर्थात सब कुछ कर सकते हैं।
आबू और अचलगढ़ में चार दिन की स्थिरता कर मंदिरों के दर्शन, शिल्प कला का निरीक्षण, गोपीचंद भरतरी, नल वगैरह : गुफाएं, और जो भी देखने योग्य स्थान थे उन्हें देख कर वहाँ से अनादरा की नाल से उतर कर क्रमशः विहार करते हुए सिरोही आये । यहां के १४ मन्दिरों के दर्शन किए तथा श्रावकों के आग्रह से दो व्याख्यान भी दिए। सिरोही से शिवगंज आये, यहाँ भी एक व्याख्यान हुआ, यहाँ से विहार कर क्रमश: एक एक रात्रि ठहरते हुए पली आये । पाली में आप तीन दिन ठहरे तथा दो व्याख्यान भी दिए; वहाँ से चल कर गेयट, सेलावास होकर जोधपुर आये; दो रात्रि यहां ठहर मंडोर, मंथाणिये होकर फाल्गुन