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मेझरनामा बन्ध करवाने की कोशिस
__ यह कार्ड जब सम्पतलाल की दुकान पर आया और उसको पढ़ाने से मालूम हुआ कि मेझानामा छपाने में केवल ज्ञानसुन्दरजी ही नहीं, किन्तु इसमें तो रत्नविजयजी का भी हाथ है। सम्पतलालजी ने श्राकर सूरिजी से कहा, साहिब ! मेमर नामो बंद था से नहीं पर ते तो निरान्तर, छपीने बाहर पड़ी जाशे।
सूरिजी ने कहा कि मैं जानता ही था कि यह मारवाड़ी साधु चालाक एवं मुत्सद्दी है; आप ने नहीं छपवाया तो रत्नविजय को लिख दिया । यदि ज्ञानसुन्दर को मेमरनामा बन्द ही करवाना था तो रत्नविजय को लिखने की क्या आवश्यकता थी; दूसरे अपन लोगों ने भी भूल की कि रत्नविजय वाला पत्र डाक में डाल दिया, यदि वह रख लिया होता तो मेझरनामा बंद हो जाता।खैर, सम्पतलाल कोई दूसरा उपाय नहीं है ? सम्पतलाल! जब तक यह मेझरनामा बंद नहीं हो वहाँ तक मुझे चैन नहीं पड़ेगा। समझ गया न ?
सम्पत-साहिब ! दूसरो उपाय तो शुं थइ सके ?
सूरिजी.-एक उपाय तो छ के तमे भावनगर जाई छापा वाला ने हजार बे हजार रुपयों नो लोभ आपो ने ते धारे तो मेझरनामो बंद करी सके तेम छ । __ सम्पत०-साहिब जैन पत्र वालों तो साधुओं नो कट्टर दुश्मन छे तेने हाथ मेझरनामो लाग्यो एटले हाथ में श्रावेला अमूल्य अवसर ने, ते केम जावा दें अमनें तो उम्मेद नथा के पांच हजार श्रापवा छतो ते मेमरनामो छपवानो बंद करी दे।
सूरिजी.-सम्पतलाल ! तमे फलोदीवाला कोई जोर श्रापो तो ज्ञानसुन्दर मानी ले खरोके ?;