Book Title: Aadarsh Gyan
Author(s): Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala

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Page 711
________________ आदर्श-ज्ञान-द्वितीय स्खण्ड ६१६ पहुँचे, वहाँ पर मोतीविजय पन्यास अपने एक शिष्य के साथ ठहरा हुआ था; आप भी वहाँ जाकर ठहर गये । जब गौचरी के लिए मुनिश्री तयार हुए तो पन्यासजी साथ चल कर उपधान के रसोड़े में ले गये, वहाँ बीदाम, पिस्ता की चक्कियें वगैरहः इतना मिष्टान्न पदार्थ देखा तो मुनिश्री ने पूछा कि यहाँ क्या है, और कौन रहता है, यह रसोड़ा किस की ओर सेचलता है ? पन्यासजी ने कहा, 'यहाँ उपधान चले छे अने श्रा रसोड़ो पण तेओ नो ज छे अने आमाथी साधुओं आहार पानी ले तो कोई दोष नथी, वेहरीलो पर्याप्त गौचरी, कारण यहाँ कोइ बीजो साधन नथी ।" पेट को भाड़ा तो देना ही था, अतः मुनिश्री ने गौचरी पानी ले लिया । जब उपधान वाली बेहनो क्रिया करने को आई तो ६० बहिनों में एक भी श्रावक नहीं, और वे भी सब की सब विधवायें जिसमें भी कोई ५-७ विधवायें तो अर्द्ध बुड्डी थों, शेष सब युवतियें थीं । पन्यासजी ने शाम को क्रिया करवा के प्रतिक्रमण किया, बाद में पन्यासजी नीचे चले गये, तथा एक २ विधवा पन्यासजी के पास आलोचना करने को आती थी, कई विधवाए पन्यास के शिष्य के पास आती थीं, परन्तु मुनिश्री वहाँ ठहर जाने से उसने मना करदी; जब मुनिजी पेशाब करने को नीचे आये तो पन्यास की पाप लीला को देख आश्चर्य होने लगा कि हे वीर, तुम्हारा यह शासन और पंच महाव्रत एवं नौवाड़ ब्रह्मचर्य के पालने वाले गोपियों के नाथ बन कर धर्म के नाम पर इस प्रकार अधर्म एवं व्यभिचार का प्रचार करे, इसको हम कैसे देख सकें, एवं पुकार किए बिना मौन साध कर कैसे बैठे रहें। आपको वहाँ एक ही दिन ठहरना था, पर पन्यास की पाप

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